नील हरित प्रसारों में
रंगों के धब्बों का
चटकीला प्रभाव है,
शुभ्र प्रकाश
अंतर्हित हो गया ।
सूरज, चाँद और मन
प्रकाश के टुकड़े हैं,
बहु रूप ।
दर्पण के टुकड़ों में
एक ही छबि है,
अपनी छवि ।
तुम्हारा प्रकाश
अनेक रूप है,
जिसका सर्व भी दर्पण नहीं ।
यह इंद्रधनुष
द्रोपदी का चीर है,
इसका अशेष छोर
शुभ्र किरण थामे है
जो हाथ नहीं आती ।
शब्द चींटियों की पाँति से
चलते रहेंगे
देश काल अनंत हैं ।
तुम सीमा रहित
अस्तित्व मात्र
कौन बिन्दू हो ?
जिसके सामने
चींटी पर्वत-सी लगती है ।
अकूल, कौन सिन्धु हो ।
अश्रु कण में भी
समा जाती हो ।