अप्सराएँ ।
हिम कलशों पर
साँस प्रात
मूँगी लाली,
सात लपटों वाली
इंद्रधनुष छाया,
हेम गौर
स्वप्न चरण चाँदनी की
रूप हीन शोभा,
तितली, जुगनूँ
हिलोर,
ओस,
अप्सराएँ ।
लीला, लावण्य,
तनिमा,-
अजान चितवन
निश्चल भंगिमा,
अदृश्य रोमांच,
आशा, लज्जा, सज्जा
अप्सराएँ ।
ओं सुर सुन्दरियो,
सुर बालाओ,
इस रूप ज्वाला की देह को
प्राणों की धूपछाँह में
नहलाओ,
डुबाओ,
यह धरती की हंसमुख सहेली,
उसका सौंधा पराग है ।
हंसों की पीठ पर
कमलों का कनक मरंद
बिखरा है,
सीप की हथेली में
सुनहला मोती हँस रहा,
लहरों के धड़कते वक्ष:स्थल पर
रूपहले अंगार सा
चाँद ऊब डूब कर रहा है ।
ओ भाव देही
अनंत यौवनाओ,
यह मृणाल तंतु है,
पागल आशा का सेतु ।
इसी से आओ जाओ ।
अभी मानव चेतना में
किरणों का तोरण
नहीं खुला,
जिससे स्वर्ग सुषमा
अगुंठित
अभिसार कर सके ।