कैसे कहूँ
अपने अछूते आँचल में
रंगों के धब्बे, मधुपों के
षट्पद चिह्न न पड़ने दे ।
यह कल की बात है ।
आज अपनी भीनी शोभा
लुटाना चाहे लुटा ।
मीठी कोमल पंखुरियाँ
आँधियाँ दलें-मलें ।
गौर वर्ण आरक्त हो जाय,
स्वर्णिम मरंद झर जायें ।
नयी पीढ़ियां मधुरस की तीव्रता में
आत्म विभोर हो जायें ।
तुझे अपनी गुंठित शोभा का मूल्य
पहचानना है ।
ओ स्रजयित्री भावयित्री
कारयित्री प्रतिभे,
तू ही लाई जातियों
संस्कृतियों सभ्यताओं को ।
असंख्य पिपीलिकाओं-से
हाथ पांव
जो धरातल पर
हिलडुल रहे हैं
यह तेरे ही प्राणों का आवेश,
रोम हर्षों की सिहर,
अवश अंगों की थरथर् है ।
जीवन विकास पथ है,
साध्य साधन में
संगति ला ।