मैंने
गुलाब की
मौन शोभा को देखा ।
उससे विनती की
तुम अपनी
अनिमेष सुषमा की
शुभ्र गहराइयों का रहस्य
मेरे मन की आँखों में
खोलो ।
मैं अवाकू रह गया ।
वह सजीव प्रेम था ।
मैंने सूँघा,
वह उन्मुक्त प्रेम था ।
मेरा ह्रदय
असीम माधुर्य से भर गया ।
मैंने
गुलाब को
आठों से लगाया ।
उसका सौकुमार्य
शुभ्र अशरीरी प्रेम था ।
मैं गुलाब की
अक्षय शोभा को
निहारता रह गया ।