यह ज्योति दुग्ध है,
शुभ्र, तैल धारवत्,
जो शील है,
अमृत ।
ओ मुग्धाओ,
ओ शोभाओ,
अपना तारुण्य अर्पित करो
रचना मंगल को ।
यह मानवता का यज्ञ है,
मानव प्रेम का यज्ञ ।
तुम्हारे कोमल अंग
समिधा हों ।
लावण्य घृत हो,
प्रेम,--प्रेरणा,
मंत्र ।
रस यज्ञ है यह ।
नील विहग
रक्त किसलय
स्वर्ण हंस
फूल निर्झर-
सब आहुति हों,
पूर्णाहुति ।
छाया जल जाय,
नारी शेष रहे ।
मानस यज्ञ यह,
भाव यज्ञ ।
श्रद्धा, आस्था
लौ उठे ।
मन का मानव जगे ।
स्वर्ण चेतन
अमृत पुरुष,
रस मनुष्य ।
वह प्रकारों का प्रकाश है,
स्वर्ग रश्मि,
भू प्रदीप ।
ओ छायाओ,
मायाओ,
ओ कायाओ,
आहुति बनो,
पूर्णाहुति ।