शरद के
रजत नील अंचल में
पीले गुलाबों का
सूर्यास्त
कुम्हला न जाय,
वायु स्तब्ध
विहग मौन ... !
सूक्ष्म कनक परागों से
आदिम स्मृति सी
गूढ गंध
अंत में समा गई !
जिस सूर्य मंडल में
प्रकाश
कभी अस्त नहीं होता,
उसकी यह
कैसी करूण अनुभूति,
लीला अनुभव !