सुनहली
धान की बाली सी
दीप शिखाएँ
अंधियाली के वृन्त पर कांपतीं,
क्या जानें ?
हीरक सकोरों में
आलोक छटाएँ
स्वप्न शीश
इंद्रधनुष सी सुलगीं
उनकी गूढ़ कथा है ।
जिसने सूर्य ही का मुख ताका
इन्हें न पहचानेगा ।
इनका प्रकाश
उस अँधेरे को हरता है
जिसे सूरज नहीं हरता ।
कितने ही प्रकाश हैं ।
दूध के झाग सा
रूई के सूत सा
उजियाला
सब से साधारण ।
मन की स्नेह ज्योति
अंधेरे को बिना मिटाए
सोना बनाती है,
वह भी प्रकाश है ।
अंधकार के पार
प्रकाश के हृदय में
जो लौ जलती है,
अनिमेष,
ध्यान मौन,
वह बिना देखे
सब कुछ समझती है ।