ओ दुग्ध श्वेत
माखन पर्वत के सूर्य,
ओ श्वेत कमलों के वन,
प्राणों के सुनहले जल,
तुम्हारे सूक्ष्म कोमल
उरोज मांसल प्रकाश ने
मुझे घेर लिया !
तुम्हारी आभा
गुह्य सौरभ है
जिसने मेरी इंद्रियों को
लपेट लिया !
तुम्हारे अनंत यौवन की सुरा पी
मेरा मन
तीनों अवस्थाओं के परे
जाग उठा !
मेरी कामना की आग में
डूब कर
तुम चाँद बन गए हो !
और
निशाओं के
उभरे नील उरोजों से
भ्रमर-से चिपक गए हो !
मैंने तुम्हारे लिए
स्वप्नों का मौन
मधु कुंज बनाया है,
ओ विधुत् अनल,
तुम प्रीति सौम्य बनकर
मानवीय रूप ग्रहण करो !
तुम मानव के
अंतर में छिपे प्रकाश के
माध्यम बन सको,
वह अधिक चेतन
अधिक पारदर्शी है !