इन रजत नील ऊंचाइयों पर
सब मूल्य, सब विचार
खो गए ।
यहाँ के शुभ्र रक्ताभ
प्रसारों में
मन बुद्धि लीन हो गए ।
तुम आती भी हो
तो अनाम अरूप गंध बन कर,
स्वर्णिम परागों में लिपटी
आनन्द सौन्दर्य का
ऐश्वर्य बरसाती हुई ।
ओ रचने,
तुम्हारे लिए कहाँ से
ध्वनि, छंद लाऊँ ?
कहाँ से शब्द, भाव लाऊँ ?
सब विचार, सब मूल्य
सब आदर्श लय हो गए ।
केवल
शब्दहीन संगीत
तन्मय रस,
प्रेम, प्रकाश और प्रतीति ।
कहाँ पाऊँ रूपक,
अलंकरण, कथा ?
ओ कविते,
ये मन के पार के
पवित्र भुवन हैं,
यहाँ रूप रस गंध स्पर्श से परे
अवाक् ऊंचाइयों
असीम प्रसारों
अतल गहराइयों में
केवल
अगम शांति है ।
अरूप लावण्य,
अकूल आनंद,
प्रेम का
अभेद्य रहस्य ।