हम आज क्या से क्या हुए, भूले हुए हैं हम इसे;
है ध्यान अपने मान का हममें बताओ अब किसे?
पूर्वज हमारे कौन थे, हमको नहीं यह ज्ञान भी,
है भार उनके नाम पर दो अंजली जल-दान भी! ॥२७४।।
होकर नितान्त परावलम्बी पशु-सदृश हम जी रहे,
हा! कालकूट सभी परस्पर फूट का हैं पी रहे!
हम देखते सुनते हुए भी देखते सुनते नहीं,
पढ़ना सभी है व्यर्थ उनका जो कभी गुनते नहीं ॥२७५।।