जो पूर्व में हमको अशिक्षित या असभ्य बता रहे
वे लोग या तो अज्ञ हैं या पक्षपात जता रहे।
यदि हम अशिक्षित थे, कहें तो, सभ्य वे कैसे हुए?
वे आप ऐसे भी नहीं थे, आज हम जैसे हुए ॥१८९॥
ज्यों ज्यों प्रचुर प्राचीनता की खोज बढ़ती जायगी,
त्यों त्यों हमारी उच्चता पर ओप चढ़ती जायगी।
जिस ओर देखेंगे हमारे चिह्न दर्शक पायेंगे,
हमको गया बतलाएँगे, जब जो जहाँ तक जायेंगे ॥१९०॥
पाये हमीं से तो प्रथम सबने अखिल उपदेश हैं,
हमने उजड़कर भी बसाये दूसरे बहु देश हैं।
यद्यपि महाभारत-समर था मरण भारत के लिये,
यूनान-जैसे देश फिर भी सभ्य हमने कर दिये ।।१९१ ।।
हमने बिगड़ कर भी बनाए जन्म के बिगड़े हुए;
मरते हुए भी हैं जगाये मृतक-तुल्य पड़े हुए।
गिरते हुए भी दूसरों को हम चढ़ाते ही रहे,
घटते हुए भी दूसरों को हम बढ़ाते ही रहे ।।१९२।।
कल जो हमारी सभ्यता पर थे हंसे अज्ञान से
वे आज लज्जित हो रहे हैं अधिक अनुसन्धान से ।
जो आज प्रेमी हैं हमारे भक्त कल होंगे वही,
जो आज व्यर्थ विरक्त हैं अनुरक्त कल होंगे वही ।। १९३।।
सब देश विद्याप्राप्ति को सन्तत यहाँ आते रहे,
सुरलोक में भी गीत ऐसे देव-गण गाते रहे
"हैं धन्य भारतवर्ष-वासी, धन्य भारतवर्ष है;
सुरलोक से भी सर्वथा उसका अधिक उत्कर्ष है1"।। १९४।।