कम कीर्ति अकबर की नहीं सत्शासकों की ख्याति में,
शासक ने उसके सम सभी होंगे किसी भी जाति में ।
हों हिन्दुओं के अर्थ हिन्दु, यवन यवनों के लिये,
हठ, पक्षपात तथा दुराग्रह दूर उसने थे किये ।। २३२ ।।
निज राज्य में सुख-शान्ति का विस्तार वह करता रहा,
अन्याय, अत्याचार को सब भाँति वह हरता रहा ।
निज शत्रुओं के भी गुणों का मान उसने था किया,
विश्वासपूर्वक हिन्दुओं को सचिव तक का पद दिया ।।२३३।।