चितौर चम्पक ही रहा यद्यपि यवन अलि हो गये,
धर्म्मार्थ हल्दीघाट में कितने सुभट बलि हो गये ।
“कुल-मान जब तक प्राण तब तक, यह नहीं तो वह नहीं,”
मेवाड़ भर में वक्तृताएँ गूंजती ऐसी रहीं !! ।। २३९ ।।
विख्यात वे जौहर1 यहाँ के अज भी हैं लोक में,
हम मग्न हैं उन पद्मिनी-सी देवियों के शोक में !
आर्य्या-स्त्रियां निज धर्म पर मरती हुईं डरती नहीं,
साद्यन्त सर्व सतीत्व-शिक्षा विश्व में मिलती यहीं !! ।।२४०।।
(1-राजपूताने में, सतीत्व धर्म की रक्षा के लिए
हज़ारों स्त्रियां जीते जी चिताओं में जल गईं ।
इसको जौहर व्रत कहते हैं ।)