हा ! हिंस्र पशुओं के सदृश हममें भरी हैं क्रूरता,
करके कलह अब हम इसी में समझते हैं शूरता ।
खोजो हमें यदि जब कि हम घर में न सोते हों पड़े
होंगे वकीलों के अड़े अथवा अदालत में खड़े ! ।। २६५ ।।
न्यायालयों में नित्य ही सर्वस्व खोते सैंकड़ों,
प्रति वार,पग पग पर, वहां हैं खर्च होते सैंकड़ों ।
फिर भी नहीं हम चेतते हैं दौड़ कर जाते वहीं,
लघु बात भी हम पाँच मिल कर आप निपटाते नहीं।।२६६।।