संसार भर के ग्रन्थ-गिरि पर चित्त से पहले चढ़ो,
उपरान्त रामायण तथा गीता-ग्रथित भारत पढ़ो।
कोई बता दो फिर हमें, ध्वनि सुन पड़ी ऐसी कहाँ ?
हे हरि ! सुनें केवल यही ध्वनि अन्त में हम हों जहाँ ॥१०५॥
यद्यपि अतुल, अगणित हमारे ग्रन्थ-रत्न नये नये
बहु बार अत्याचारियों से नष्ट-भ्रष्ट किये गये।
पर हाय ! आज रही सही भी पोथियाँ यों कह रहीं
क्या तुम वही हो ! आज तो पहचान तक पड़ते नहीं ॥१०६॥