वह भद्र भारत सर्वदा भू-लोक-नेता सिद्ध है,
संसार में सबसे अधिक स्वाधीन-चेता सिद्ध है।
उन्मादिनी माया स्वयं उसको भुला पाती नहीं,
पुनरागमन की बन्धता भी है उसे भाती नहीं ॥१८७॥
है लक्ष्य केवल मुक्ति ही उसके अतुल उद्देश का,
है दास भी तो वह उसी वैकुण्ठपति विश्वेश का।
साक्षी स्वयं इस बात के उसके वही सु-विचार हैं-
संसार के साहित्य के जो सार हैं, आधार हैं ॥१८८॥