जो हम कभी फूले-फले थे राम-राज्य-वसन्त में,
हा ! देखनी हमको पड़ी औरङ्गजेबी अन्त में !
है कर्म्म का ही दोष अथवा सब समय की बात है,
होता कभी दिन है, कभी होती अँधेरी रात है ।।२२४।।
है विश्व में सबसे बली सर्वान्तकारी काल ही,
होता अहो अपना पराया काल के वश हाल ही ।
बनता कुतुबमीनार यमुनास्तम्भ का निर्वाद है,
उस तीर्थराज प्रयाग का बनता इलाहाबाद है ! ।।२२५।।