अन्यायियों का राज्य भी क्या अचल रह सकता कभी?
आखिर हुए अँगरेज शासक, राज्य है जिनका अभी।
सम्प्रति समुन्नति की सभी हैं प्राप्त सुविधाएँ यहाँ,
सब पथ खुले हैं, भय नहीं विचरो जहाँ चाहो वहाँ ॥२४३।।
अन्याय यवनों का हमें निज दोष से सहना पड़ा,
है किन्तु नारायण अहा ! न्यायी तथा सकरुण बड़ा !
देते हुए भी कर्म-फल हम पर हुई उसकी दया,
भेजा प्रसिद्ध उदार उसने ब्रिटिश राज्य यहाँ नया ॥२४४॥
शासन किसी पर-जाति का चाहे विवेक-विशिष्ट हो,
सम्भव नहीं है किन्तु जो सर्वांश में वह इष्ट हो ।
यह सत्य है, तो भी ब्रिटिश-शासन हमें समान्य है,
वह सु-व्यवस्थित है तथा अशा-प्रपूर्ण, वदान्य है ।। २४५ ॥
सम्प्रति सभी साधन हमें हैं सुलभ आत्मविकास के,
पथ, रेल, तार मिटा रहे हैं सब प्रयास प्रवास के ।
प्राय: चिकित्सालय, मदरसे, डाकघर हैं सब कहीं,
बस, पास पैसा चाहिए फिर कुछ असुविधा है नहीं ।। २४६ ।।
सचमुच ब्रिटिश साम्राज्य ने हमके बहुत कुछ है दिया,
विज्ञान का वैभव दिखाया समय से परिचित किया ।
उससे हमारी कीर्ति का भी हो रहा उपकार है,
बहु पूर्व-चिन्हों का हुआ वा हो रहा उद्धार है ।।२४७ ।।