ये सब अ-शिक्षा के कुफल हैं, बास है जिसका यहाँ;
अध्यात्म विद्या का भवन हा ! आज वह भारत कहाँ ?
धिक्कार है, हम खो चुके हैं आज अपना ज्ञान भी;
खोकर सभी कुछ अन्त में खोया महाधन मान्य भी ! ॥१३३॥
हा ! सैंकड़े पीछे यहाँ दस भी सुशिक्षित जन नहीं !
हाँ, चाह कुलियों की कहीं हो, तो मिलेंगे सब कहीं !!
हतभाग्य भारत ! जो कभी गुरुभाव से पूजित रही-
करती भुवन में भृत्यता सन्तान अब तेरी वही !!! ||१३४||
छाई अविद्या की निशा है, हम निशाचर बन रहे;
हा ! आज ज्ञानाऽभाव से वीभत्स रस में सन रहे !
हे राम ! इस ऋषि-भूमि का उद्धार क्या होगा नहीं ?
हम पर कृपा कर आपका अवतार क्या होगा नहीं ॥१३५।।
विद्या विना अब देख लो, हम दुर्गुणों के दास हैं;
हैं तो मनुज हम, किन्तु रहते दनुजता के पास हैं।
दायें तथा बायें सदा सहचर हमारे चार हैं-
अविचार, अन्धाचार हैं, व्यभिचार, अत्याचार हैं !॥१३६।।
हा ! गाढ़तर तमसावरण से आज हम आच्छन्न हैं,
ऐसे विपन्न हुए कि अब सब भाँति मरणासन्न हैं !
हम ठोकरें खाते हुए भी होश में आते नहीं,
जड़ हो गये ऐसे कि कुछ भी जोश में आते नहीं ! ॥१३७॥