दिनदिन सभाएँ भी भयङ्कर भेद-भाव बढ़ा रहीं,
प्रस्ताव करके ही हमें कर्तव्य-पाठ पढ़ा रहीं।
पारस्परिक रण-रङ्ग से अवकाश उनको है कहाँ ?
“मत-भिन्नता' का 'शत्रुता' ही अर्थ कर लीजे यहाँ ! ॥१७५ ।।
चन्दे विना उनका घड़ी भर काम कुछ चलता नहीं,
पर शोक है, तो भी यहाँ समुचित सु-फल फलता नहीं।
वीर ऐसे भी बहुत जो देश-हित के व्याज से-
अपने लिए हैं प्राप्त करते दान-मान समाज से ! ॥ १७६ ।।