यदि पूर्वजों की नीति को औरंगज़ेब न भूलता
होती यवन राजत्व पर विधि की न यों प्रतिकूलता।
गो-वध मिटाने को कहाँ वह पूर्वजों की घोषणा
सोचो, कहाँ यह हिन्दुओं के धर्म-धन की शोषणा ॥२३५॥
अन्याय ऐसे, पुरुष होकर हाय ! हम सहते रहे,
करके न कुछ उद्योग विधि की बात ही कहते रहे।
हम चाहते तो एक होकर क्या न कर सकते भला?
पर ऐक्य का तो नाम लेते ही यहाँ घुटता गला !! ॥२३६॥