इम योग भी पाकर उसे उपयोग में लाते नहीं,
सामर्थ्य पाकर भी किसी को लाभ पहुँचाते नहीं ?
जैसे बुने हम दूसरों की हानि ही करते सदा,
अधिकार पाकर और भी अघ के घड़े भरते सदा ! ।। २६३ ।।
न्यायालयों में भी निरन्तर घूंस खाते हैं हमीं,
रक्षक पुलिस को भी यहाँ भक्षक बनाते हैं हमीं ।
कर्तृत्व का फल हम प्रजा पर बल दिखाना जानते,
हस दीन-दुखियों के रुदन को गान-सम हैं मानते ! ।।२६४।।