देखो जहाँ विपरीत पथ ही हाय ! हमने है लिया,
श्रीराम के रहते हुए आदर्श रावण को किया !
हम हैं सुयोधन के अनुग तजकर युधिष्ठिर को अहो !
सोचो भला, तब फिर हमारा पतन दिन दिन क्यों न हो ॥२६७||
15 अप्रैल 2022
देखो जहाँ विपरीत पथ ही हाय ! हमने है लिया,
श्रीराम के रहते हुए आदर्श रावण को किया !
हम हैं सुयोधन के अनुग तजकर युधिष्ठिर को अहो !
सोचो भला, तब फिर हमारा पतन दिन दिन क्यों न हो ॥२६७||
7 फ़ॉलोअर्स
मैथिलीशरण गुप्त जी हिंदी साहित्य के प्रथम कवि के रूप में माने जाते रहे हैं. बाल कविताओं के प्रमुख कवि और खड़ी बोली को अपनी कविताओं का माध्यम बनाने वाले प्रमुख महत्वपूर्ण कवि मैथिलीशरण गुप्त जी का जन्म सन 3 अगस्त 1886 ई. को झाँसी जिले के चिरगांव नामक स्थान पर एक संपन्न वैश्य परिवार में हुआ था.पवित्रता, नैतिकता और परंपरागत मानवीय सम्बन्धों की रक्षा आदि मैथिलीशरण गुप्त जी के काव्य के प्रथम गुण हुआ करते थे. गुप्त जी की कीर्ति भारत में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय बहुत ही प्रभावशाली सिद्ध हुईं थी. इसी कारण से महात्मा गांधी जी ने इन्हें राष्ट्रकवि की उपाधि से सम्मानित किया था और आज भी हम सब लोग उनकी जयंती को एक कवि दिवस के रूप में मनाते हैं. सन् 1954 ई. में भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्मभूषण पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था. इन्होंने मात्र 9 वर्ष की आयु में शिक्षा छोड़ दी थी. इसके उपरांत इन्होने स्वाध्याय द्वारा अनेक भाषाओं का ज्ञान अर्जित किया था. गुप्त जी का मार्गदर्शन मुंशी अजमेरी जी से हुआ और 12 वर्ष की आयु में ब्रजभाषा में ‘कनकलता’ नाम से पहली कविता लिखना आरंभ किया था. महादेवी वर्मा जी के संपर्क में आने से उनकी कवितायेँ खाड़ी बोली सरस्वती में प्रकाशित होना प्रारम्भ हो गया था. प्रथम काव्य संग्रह “रंग में भंग” तथा बाद में “जयद्रथ वध” प्रकाशित हुई. | D