अब एक हममें दूसरे को देख सकता है नहीं,
वैरी समझना बन्धु को भी, है समझ ऐसी यहीं!
कुत्ते परस्पर देखकर हैं दूर से ही भूंकते,
पर दूसरे को एक हम कब काटने से चूकते? ॥२७६।।
हों एक माँ के सुत कई व्यवहार सबके भिन्न हों,
सम्भव नहीं यह किन्तु जो सम्बन्ध-बन्धन छिन्न हों ।
पर यह असम्भव भी यहाँ प्रत्यक्ष सम्भव हो रहा,
राष्ट्रीय भाव-समूह मानों सर्वदा को सो रहा ! ।। २७७ ।।