भारत-गगन में उस समय फिर एक वह झण्डा उड़ा
जिसके तले, आनन्द से, आधा जगत आकर जुड़ा ।
वह बौद्धकालिक सभ्यता है विश्व भर में छा रही,
अब भी जिसे अवलोकने को भूमि खोदी जा रही ! ।। २०४।।
वर्णन विदेशी यात्रियों ने उस समय का जो दिया,
पढ़कर तथा सुन कर उसे किसने नहीं विस्मय किया ?
बनते न विद्या प्राप्त कर ही वे यहाँ बुधवर्य्य थे
श्री भी यहाँ की देख कर करते महा आश्चर्य थे ।।२०५||
तब भी कला-कौशल यहाँ का था जगत के हित नया,
है फ़ाहियान विलोक जिसको मुग्ध होकर कह गया
"यह काम देवों का किया है, मनुज कर सकते नहीं
दृग देखकर जिसको कभी श्रम मान कर थकते नहीं !"।। २०६।।