‘मेरी आवाज़ ही पहचान है, ‘गर याद रहे’...भला किसने नहीं सुना होगा फ़िल्म ‘किनारा’ का ये मशहूर गीत ! गीतकार गुलज़ार साहब का लिखा ये गीत एक सुरीला सबक़ है आवाज़ की दुनिया के उन तमाम दोस्तों के लिए जिनके लिए उनकी आवाज़ ही उन्हें पहचान देती है I
कितनी ही बार आवाज़ों को अच्छी-बुरी, सुरीली-बेसुरी, हल्की-फीकी जैसी तमाम टिप्पड़ियों से नवाज़ा जाता है फिर आवाज़ों के छोटे-बड़े जादूगर तमाम मशक्कत करके आवाज़ को मनचाहे रूप में ढालने की बरस-ओ-बरस कोशिशें किया करते हैं I
ज़रा सोचिए उस जादूगर की करामात जिसने दुनिया में सब एक जैसे दिखने वाले अनगिनत इन्सानों को अलग-अलग आवाज़ों से नवाज़ा I सबकी एक जैसी आवाजें बेहद सुरीली और बहुत बढ़िया भी होतीं तो भी सबकी अलग पहचान कैसे होती ! इस पर भी इन्सान का दिल नहीं भरा तो वो अपनी आवाज़ को मुँह टेढ़ा-मेढ़ा बना-बना कर, घुमा-घुमा कर और कुछ रंग देने से भी बाज़ नहीं आता I
कितने ही लोग बड़े-बड़े नामचीन कलाकारों की नक़ल करके उनकी आवाज़ में अपना फ़न पेश करने की कोशिश करते हैं I थोड़ी देर के लिए उन्हें सुनते हुए कौतूहल तो होता है लेकिन सच्चाई फिर भी यही रहती है कि बुनियादी तौर पर जिसकी जो आवाज़ है, बस वही बढ़िया है बाक़ी तो फिर वही है कि ग़रीबे लाल ख़ुद को अमीर चंद बताते घूमें I
श्रेष्ठ कलाकार, उभरते कलाकारों को यही सलाह देते हैं कि आपकी जैसी भी आवाज़ है, बस उसी में बोलिये, गाइए-गुनगुनाइए I रियाज़ करके आवाज़ को तराशना ज़रूरी है लेकिन ज़बरदस्ती अच्छी-भली आवाज़ को मन-मुआफ़िक रंग देने की कोशिश करना बे-सिरपैर की बात लगती है I कमाल की बात ये है कि लोग जिन अज़ीम फनकारों की आवाज़ों की नक़ल करके शोहरत पाने की कोशिश करते हैं, उन चोटी के कलाकारों ने कभी किसी आवाज़ की नक़ल नहीं की I सच तो ये है कि उच्चारण अच्छे हों, बात अच्छी हो तो हर आवाज़ अच्छी लगती है। बात बोलने की हो तो इंसान की आवाज़ ही उसकी पहचान होती है I