सभ्यता के प्राचीन कालखंड नवपाषाण युग और धातु युग विशेष रूप से ताम्र युग में कानपुर अपनी पुरा सम्पदा के लिए समृद्ध रहा है I कानपुर नगर एवं देहात के अनेकानेक स्थानों से ताम्र सभ्यता के आयुध और मुद्राएँ म्रिन्मूरती और प्रस्तर प्रतिमाएँ प्राप्त होती रहती हैं I इसी कड़ी में कुषाण कालीन (प्रथम में तीसरी शती) सांस्कृतिक समृद्धि का नगर ‘तिश्ती’ दृष्टव्य है I तिश्ती गाँव से पूर्व ही कुरुगंजवा स्थान पर एक शिवाला है, जो १८वीं सदी के आस-पास एक ऊँचे चबूतरे पर बनाया गया है I मन्दिर बाहर व गर्भगृह से अष्टकोणीय है I गर्भगृह में एक विशाल शिवलिंग है जिसे चूनार के पत्थर को अत्यधिक रगड़कर चिकना किया गया है I शिवाला, चूने-गारा और लखौरी ईंट से निर्मित है I इसके ऊपर के गोल गुम्बद पर कमलदल और कलश तथा सर्पफणाकृति अंकन है I मन्दिर का शिखर दूर से ही भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है I मन्दिर से ही तिश्ती ग्राम एक ऊँचे टीले पर बसा दिखाई पड़ता है I ग्राम में प्रवेश करने पर ऊँचे भाग को लोगों के द्वारा गढ़ी का संबोधन ज्ञात हुआ I यहाँ पर लोगों ने एक भवन के पास खुले पक्के चबूतरे पर खान्दितावशेष प्रतिमाओं के साथ अनेक प्रतिमाएँ और अलंकृत प्रस्तर खंड देखे I उनमें से चतुर्भुजी विष्णु की शिष्ट पत्थर पर उत्कीर्णित प्रतिमा सर्वाधिक आकर्षक है I भगवान विष्णु अभंग मुद्रा में पद्मासन पर खड़े दर्शाए गए हैं I प्रतिमा में सिर और भुजा खंडित है तथा विविध आभूषणों में वनमाला, यज्ञसूत्र मेखला, कंठहार से प्रतिमा सुसज्जित है I उनके चरणों के दाएँ और बाएँ त्रिभंग मुद्रा में परिचारिकाओं का अंकन है और ऊपर के दोनों ओर बने प्रकोष्ठों में सिंह और हाथी पर बैठे व्यक्ति का अंकन है जो युद्धरत प्रतीत होता है I पद्मासन के नीचे के भाग में कमलनाल आदि का अंकन है I यह मूर्ति १०-११वीं शताब्दी की मूर्ति कला का अनुपम उदाहरण है I एक अन्य विष्णु की बलुआ बादामी पत्थर की सिर भुजा खंडित प्रतिमा है I इसमें मेखला, कंठहार, भुजबंध का अंकन है I भगवान् विष्णु की प्रतिमा का खंडित शीर्ष भी उपलब्ध है जो किरीट मंडित है I
एक अन्य बलुआ बादामी पत्थर की अम्बिका की प्रतिमा हैं जिसमें देवी द्विभुजी है और ललितासन मुद्रा में शिशु को मोद प्रदान करते हुए दुग्धपान करा रही है I इसके बाएँ पार्श्व में संभवतः शिव अथवा किसी योगी का अंकन है I इन्हीं मूर्ति खण्डों में कुछ प्रतिमावेशों में चँवरधारी सेवक और भक्त भी उत्कीर्णित हैं I इन्हीं में नृत्य गणेश की प्रतिमा में गणेश नृत्य मुद्रा में दर्शनीय हैं I यह मूर्ति भी १०-११वीं सदी (मध्यकाल) की है I इन खंडितावशेशों में विष्णु प्रतिमा के आयुधचक्र, पद्म और गदा के भी अवशेष हैं I आबादी के किनारे चानन देवी का स्थान है I यहाँ महिषासुरमर्दिनी देवी संहार मुद्रा में दर्शाई गई हैं, जो मध्यकाल खंड की अनुपम कलाकृति है I किन्तु इस प्रतिमा में विशिष्ट बात यह है कि सिरविहीन प्रतिमा पर एक कुषाण कालीन स्त्री का सिर प्रतिमा में जोड़ा गया है I यह शीर्ष कुणाल युगीन है, जो लाल चित्तीदार बलुए पत्थर का है I इसी प्रकार यहाँ अन्य शीर्ष व प्रतिमावशेष मिलते हैं I ऐसा प्रतीत होता है कि कुणाल कालीन ये प्रतिमाएँ मथुरा से लायी गई होंगी और निश्चित ही यह स्थान कुणाल युग में महत्वपूर्ण रहा होगा I इस सम्बन्ध में अन्य पुरातत्व साक्ष्यों से भी यह सामने आता है कि यह गाँव कुणाल कालीन सभ्यता एवं संस्कृति का केंद्र रहा होगा, क्योंकि यहाँ से कुणाल कालीन मृद्भांड और इंकपॉट लिड और कैरीनेट्रेड हांडियां तथा कुणाल कालीन ईंटें भी प्रचुरता में मिलती हैं I
गाव वालों और स्थानीय लोगों का यह भी कहना है कि समय-समय पर प्राचीन सिक्के भी प्राप्त होते रहते हैं, लेकिन देखने को नहीं मिले I इससे निष्कर्ष निकलता है कि लगभग 200 ईसा पूर्व से वर्तमान तक की तिश्ती सांस्कृतिक पुरासम्पदा का कोष रहा है I
─डॉ. एल.एम. वहल
अवकाशप्राप्त अधीक्षण पुरातत्वविद
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण
साभार: ‘मातृस्थान’ हिन्दी मासिक