घासीराम के चूरन का सूस्का आवोल ताबोल गीत (नर्सरी टाइम) की तरह कितने ही वर्षों से आज भी प्रचलित हैं I
कानपुर कनकैया, जहाँ बहती गंगा मैया I
ऊपर चले रेल का पहिया, चना जोर गरम II
इस तरह के बहुत से शिशु-गीत गाने वाले प्रताप नारायण मिश्र (अरे बुढ़ापा तोहरे मारे हम तो अब नाकुआय गयन) आचार्य कृष्ण विनायक फड़के (मेरी छोटी सी गुड़िया बाज़ार गई थी) नारायण प्रसाद अरोड़ा, डॉ. विद्याभूषण ‘विभु’ (झूम हाथी झूम हाथी) चंद्रपाल सिंह यादव ‘मयंक’ (मैंने बहुत मिठाई खाई) हेमंत प्रसाद दीक्षित विश्वबंधु, डॉ. प्रतीक सिंह, डॉ. प्रसाद निष्काम, आदि बच्चों के कवियों ने बाल कल्याण के लिए बालसाहित्य को मेरुदंड माना I परवर्ती कवियों ने बालकाव्य समारोह के कार्यक्रम चलाए और इनकी तरह अन्य शहरों में भी अनुकरण हुआ I बाहर से इनमें शामिल होने के लिए सर्वश्री सोहनलाल द्विवेदी, आचार्य अज्ञात, द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी, निरंकार देव सेवक, डॉ. रोहिताश्व अस्थाना, विनोद चन्द्र पाण्डेय ‘विनोद’, सूर्य कुमार पाण्डेय, कौशलेन्द्र पाण्डेय, चक्रधर नलिन प्रायः प्रतिभागिता करते रहे I बालकवि सम्मलेन कानपुर में सन 1980 में प्रारम्भ हुए I
कानपुर में बाल काव्यधारा को प्रगतिगामी बनाने वालों में डॉ. कमल मुसद्दी, डॉ. सुरेश अवस्थी, डॉ. कमलेश द्विवेदी, डॉ. विजय प्रकाश त्रिपाठी, भालचंद्र सेठिया, राधेश्याम सक्सेना, ऋषिकेश, राघवेन्द्र त्रिपाठी, मृगांक त्रिवेदी, श्याम निगम, विद्या सक्सेना, स्वतंत्र, धीरेन्द्र कुमार यादव, डॉ. शशि शुक्ला, गीता चौहान, डॉ. ममता तिवारी आदि विश्रुत हैं I
शिक्षा क्रांति ने अनेक बाल कल्याण संस्थाओं की स्थापना की I बालसंघ (आचार्य कृष्ण विनायक फडके, भगवती प्रसाद गुप्त, रामकृष्ण मिश्र, किशोरीलाल गुप्त, रामकृष्ण तैलंग, जगदम्बा प्रसाद बाजपेयी) बालसेवक विरादरी (लोकेश्वरनाथ सक्सेना, भार्गव परिवार, मानवती आर्या, कृष्ण चन्द्र आर्य, नरेश चन्द्र सक्सेना ‘सैनिक’) सुभाष चिल्ड्रेन्स सोसाइटी (कमल कान्त तिवारी) बाल्समाज जैसी स्वस्थ संस्थाओं ने जहाँ बच्चों के खेलने के लिए पार्कों में झूले डलवाए वहीं सांस्कृतिक साहित्यिक, संगीतात्मक कार्यक्रम रखे I इस तरह उपेक्षित बाल मन पर ध्यान दिया गया और अन्त्याक्षरी और नाटकों की स्पर्धाएं आयोजित हुईं I प्राथमिक शिक्षा सुधार परिकल्प (डॉ. विजय लक्ष्मी त्रिवेदी, सत्यकाम पहारिया) सेवा भारती, संस्कार भारती, भारत विकास परिषद् जैसी महत्वपूर्ण बालकल्याण संस्थाओं का प्रदेय महत्वपूर्ण है I भारतीय बाल कल्याण संस्थान (प्रेमचन्द्र अग्निहोत्री, गंगा प्रसाद गुप्त, रामनाथ महेन्द्र, प्रताप नारायण गुप्त, श्री प्रकाश जायसवाल) ने 28 वर्षों में सारे देश के बाल साहित्य रचनाकारों, मेधावी छात्रों, बाल सेवकों, संस्थाओं और चिकित्सकों का सम्मान किया है I सम्मानितजनों की संख्या 700 के लगभग है I संस्थान का प्रमुख कार्य बाल कवि सम्मलेन करके नई प्रतिभाओं को प्रोत्साहन देना भी रहा है I बालभवन (हरिभाऊ खांडेकर) ने बालश्री राष्ट्रीय पुरस्कार भी बच्चों को दिलवाए हैं I
गद्यलेखन द्वारा बालसाहित्य सृजेताओं में श्याम नारायण कपूर विज्ञान भूषण सम्मान (उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान) से विभूषित प्रमुख हैं I सिद्धेश्वर अवस्थी, संजीबा, राधेश्याम दीक्षित, विनोद रस्तोगी आदि ने बाल नाट्य मंचन, लेखन और प्रशिक्षण देकर ख्याति प्राप्त की I क्रांतिकारियों के स्वाभिमानी व्यक्तित्व की परिचायक पुस्तक, ‘क़लम आज उनकी जय बोल’, जगदीश प्रसाद गुप्त की वह श्रेष्ठ कृति है जिसे दिल्ली नगर निगम ने पुरस्कृत किया I कथा और उपन्यास के क्षेत्र में बाल्मीकि त्रिपाठी, कृष्ण गोपाल आविद, प्रेमचन्द्र, भगवती प्रसाद बाजपेयी, राजेंद्र राव, गिरिराज किशोर, शत्रुघ्न लाल शुक्ल, प्रताप नारायण श्रीवास्तव, रमाकांत श्रीवास्तव, सत्यकाम पहारिया, राजेन्द्र दुबे का प्रदेय महत्वपूर्ण है I
बाल पत्रिकाओं में बाल्दर्शन और बालसाहित्य समीक्षा मासिक पत्रिकाओं के अतिरिक्त अनेक दैनिक, साप्ताहिक पत्रों ने बच्चों के स्तम्भ प्रचलित किये I इनके संपादकों में शम्भुरात्न त्रिपाठी, विष्णु त्रिपाठी, जीतेन्द्र मेहता, विजय किशोर मानव, रामाश्रय द्विवेदी, रोमी अरोरा, संध्या बाजपेयी और रजनी गुप्त के अवदान को हमेशा याद किया जाएगा I कुशल चित्रांकन के लिए अंकुश (भाई साहब) ऋषि भास्कर निगम और ब्रज बहुत लोकप्रिय रहे हैं I
लखनऊ के साथ-साथ, बालमन के उन्नयन में, कानपुर ही ऐसा नगर है जहाँ के चार बाल साहित्यकार उ.प्र. हिन्दी संसथान लखनऊ से बालसाहित्य भारती सम्मान प्राप्त कर सके हैं I वे साहित्यकार हैं : आचार्य कृष्ण विनायक फड़के, डॉ. राष्ट्रबंधु, चन्द्रपाल सिंह यादव ‘मयंक’ और रामनरेश सक्सेना ‘सैनिक’ I बाबा कानपुरी, राममनोहर त्रिपाठी रमाकांत शर्मा उद्भ्रान्त, कौशल पाण्डेय, रूप सिंह चंदेल, कन्हैया लाल नंदन, राधेश्याम बंधु कानपुर की माटी की वे विभूतियाँ हैं जिनके बारे में गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है: ‘उपजत अनत अनत छवि लहहीं’ ।
-डॉ. राष्ट्रबंधु
(साभार: ‘मातृस्थान’ पत्रिका)