यूँ तो भारत की सभ्यता, संस्कृति, ज्ञान और विज्ञानं के संगम के लिए कभी भी किसी निमंत्रण की आवश्यकता नहीं रही है. ये वो देश है जहाँ धर्म के पावन उत्सव देखते ही देखते महाकुम्भ के मेले में परिणित हो जाते हैं. आई.आई.टी. जैसे अति विशिष्ट ज्ञान-विज्ञानं के इतिहास को जीवंत बनाये रखने वाले निश्छल मन-मस्तिष्क जब किसी विज्ञान-कुम्भ की परिकल्पना करते हैं तो निश्चित ही टेककृति जैसे उत्कृष्ट आयोजन हमारी संस्कृति का हिस्सा बन जाते हैं.
जहाँ तक टेककृति २०१५ के सबसे अच्छे कार्यक्रम का विषय है तो निश्चित ही ये एक ऐसा प्रश्न है जैसे एक बागवान से ये पूछा जाए कि इस बाग़ का सबसे अज़ीज़ दरख़्त कौन सा है. फिर भी मुझे लगता है कि आंग्ल-भाषा और पश्चिमी संस्कृति के हो रहे स्याह-सफ़ेद समाज में, इंटरनेट के युग में किसी शब्दनगरी का बस जाना, सबसे अच्छी बात, सबसे अच्छा सत्कर्म है. यह सबसे अच्छा कार्यक्रम भी बनेगा जब हिंदी में कार्य करने का क्रम अनवरत इस वेबसाइट पर जारी रहेगा. इसमें कोई संदेह नहीं कि सूर, कबीर, तुलसी और मीरा कि अमूल्य रचनाएं अंग्रेजी में अनुवादित नहीं कि जा सकतीं. अब भी देश और समाज में तमाम ऐसे सरस्वती-पुत्र हैं जो लिखना-पढ़ना और सीखना चाहते हैं, उनके लिए निःसंदेह ये वेबसाइट 'शब्दनगरी' किसी गुरुकुल जैसा सुकून और ज्ञान-प्रवाह देगी.
इतने ढेर सारे स्टालों में, एक स्टाल में हिंदी भाषा में 'शब्दनगरी' लिखा देखकर ऐसा लगा जैसे विदेश में कोई अपने देश का, अपने गाँव का कोई पुराना दोस्त मिल गया हो.
'शब्दनगरी' के उज्जवल भविष्य के लिए कोटिशः शुभकामनाएं!
प्रस्तुत लेख, आई.आई.टी. के टेककृति महोत्सव २०१५ में शब्दनगरी द्वारा आयोजित समीक्षा लेखन प्रतियोगिता में प्रतिभागी धर्मेन्द्र कुमार शर्मा ने लिखा जिन्हें 'शब्दनगरी' ने प्रथम पुरस्कार से सम्मानित किया.
आकाशवाणी के कानपुर केंद्र पर वर्ष १९९३ से उद्घोषक के रूप में सेवाएं प्रदान कर रहा हूँ. रेडियो के दैनिक कार्यक्रमों के अतिरिक्त अब तक कई रेडियो नाटक एवं कार्यक्रम श्रृंखला लिखने का अवसर प्राप्त हो चुका है. D