जब ज़िन्दगी ख़ुद के लिए एक बोझ बन जाती है तो इन्सान जीना नहीं चाहता लेकिन क़ानून किसी भी व्यक्ति को इच्छा मृत्यु की इजाज़त नहीं देता I ऐसे में क्या इच्छा मृत्यु को संविधान के तहत मिले मौलिक अधिकारों में शामिल किया जाना उचित होगा ?
16 जनवरी 2016
जब ज़िन्दगी ख़ुद के लिए एक बोझ बन जाती है तो इन्सान जीना नहीं चाहता लेकिन क़ानून किसी भी व्यक्ति को इच्छा मृत्यु की इजाज़त नहीं देता I ऐसे में क्या इच्छा मृत्यु को संविधान के तहत मिले मौलिक अधिकारों में शामिल किया जाना उचित होगा ?
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आकाशवाणी के कानपुर केंद्र पर वर्ष १९९३ से उद्घोषक के रूप में सेवाएं प्रदान कर रहा हूँ. रेडियो के दैनिक कार्यक्रमों के अतिरिक्त अब तक कई रेडियो नाटक एवं कार्यक्रम श्रृंखला लिखने का अवसर प्राप्त हो चुका है. D
21 जनवरी 2016
ज़िन्दगी सिर्फ घिसटने का नाम नहीं है, इसलिए इच्छामृत्यु एक तरह से मुक्ति ही होगी I
21 जनवरी 2016