ब्रज संस्कृति अखिल भारतीय संस्कृति के अंतर्गत क्षेत्रीय संस्कृति के रूप में चारो ओर अभिहित है I सामूहिक संस्कृति होते हुए भी कुछ निजी विशेषताएँ भी परिलक्षित होती हैं I इस कारन विशिष्ट रूप प्राप्त होने पर ही सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति को श्रेष्ठ संस्कृति क्षेत्र होने का गौरव ब्रज को प्राप्त हुआ है I यह भारत की सबसे प्रधान, व्यापक और कल्याण की संस्कृति है I
ब्रज संस्कृति के निर्माण में आर्य-अनार्य जैन, बौद्ध, हिन्दू और मुस्लमान, सभी समुदाय तथा धर्मों के आचार्य, भक्त व ब्रज के आस्थावान सहृदय व्यक्तियों ने सहयोग प्रदान किया है I ब्रज संस्कृति में हिन्दी भाषा की भांति सभी समुचित व उत्तम गुणों को अपने में अपने में समायोजित करने की अपूर्व विशेषता है I भारतीय संस्कृति की गरिमा व अस्मिता को स्थायित्व रूप प्रदान करने में ब्रज संस्कृति का योगदान अद्वितीय माना जाता है I यह कथन अधिक समीचीन है I ब्रज संस्कृति भारत की विपुल संस्कृति की उन्नायिका है I प्रारम्भ में कहा गया है कि ब्रज-संस्कृति अति प्राचीन है I इसकी प्राचीनता इतिहास के सामान है I इस कारण जगत के जनजीवन की चेतना का अस्तित्व भी ब्रज संस्कृति से ही सम्बद्ध है I पूर्व कथनानुसार ब्रज संस्कृति का वर्णन वेद-पुराणों, शास्त्रों एवं स्मृतियों में है I यहाँ तक कि विदेशी यात्रियों के वर्णनों में भी ब्रज संस्कृति की गूँज है I ब्रज के सांस्कृतिक उपकरणों की ओर ध्यान देने पर ज्ञात होता है कि इसके प्रमुख आधार हैं- ब्रज की गौ संस्कृति, धार्मिकता, आध्यात्मिकता, ब्रज जन-जीवन के आचार-विचार, साथ ही साहित्य और कला I इस संस्कृति की उन्नति और समृद्धि में सहायक हैं- मन्दिर, देवालय, उत्सव, समारोह, ब्रज यात्रा और रास लीला I
ब्रज संस्कृति के उन्नायक व प्रवर्तक थे श्रीकृष्ण I उन्हें गोपाल का नाम दिया गया, जो सार्थक सिद्ध हुआ I इस प्रकार गोपाल ही इसके परमोपास्य हैं तथा गौ, गोपी, गोप, गोकुल और गोष्ट इनके परिकर हैं I ब्रज में गोपाल-कृष्ण ने गायों के साथ अपना अधिक समय व्यतीत किया I गायों का पोषण करना, वन में विचरण करना, गौ-गोप-गोपियों के साथ अनेक प्रकार की लीलाएं करना तथा विपत्ति में सहायक होना ही उनके प्रमुख कार्य थे I यह संस्कृति अपने इष्ट कृष्ण जैसे नियामक प्राप्त कर धार्मिक बन गई I यह संस्कृति मूलतः धार्मिक संस्कृति है I इसको साहित्य और कला का योगदान प्राप्त हुआ है I अतः संवर्धन व उन्नयन के शिखर पर शीर्षस्थित हुई और सर्वोत्तम सिद्ध हुई I
माधुर्यपूर्ण मथुरा, परब्रह्म श्रीकृष्ण की लीलास्थली है I अनेकानेक संतों-महात्माओं-भक्तों ने इस माधुर्य का रसास्वादन कर साहित्य की रचना कर कला-कुशलता का परिचय दिया है I इनका साहित्य हमारा साक्ष्य है I इन रचनाओं के अनुसार आध्यात्मिक मथुरापुरी की महिमा अनिवर्चनीय, अगम्य, अगाध एवं अपार मानी गई है I
उपनिषद तथा अन्य रहस्यग्रंथों में कृष्णलीला के पांच सूत्रों का उल्लेख है I ब्रज, गौएँ, गोपाल, गोप और गोपी I इनका आध्यात्मिक रूप इस प्रकार है- शरीर-ब्रजभूमि; इन्द्रियाँ-गौएं; आत्मा-गोपाल; जीव-गोप और वृत्तियाँ-गोपियाँ हैं I इस सब प्रकार का समन्वय करने पर सम्पूर्ण शरीर है I श्रीकृष्ण की लीलास्थली है I इस कारण ब्रजभूमि की महिमा और गरिमा गोप और गोपियों की कल्पनात्मक भावनाओं की सरिता में निहित है I
—डॉ. हर्षनन्दिनी भाटिया
(‘मातृस्थान’ से साभार)