सम्पूर्ण विश्व में नारी के प्रति सम्मान एवं प्रशंसा प्रकट करते हुए 8 मार्च का दिन उनकी सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक उपलब्धियों के उपलक्ष्य में, उत्सव के रूप में मनाया जाता है। 'धरती' के लिए प्रयुक्त शब्द- भू, धरा, धरिणी, वसुंधरा, इला, मही, रत्नगर्भा आदि...नारी रूपी शक्ति के भी पर्याय हैं। शास्त्रों में नारी को भगवान शिव की शक्ति कहा गया है। नारी जीवन का आधार है। पुरुष मकान का निर्माण कर सकता है, किन्तु उसे घर का रूप देने के लिए नारी की आवश्यकता होती है।
आज की नारी किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नहीं है। आज युग ने फिर से करवट ली है और स्त्रियों के संबंध में लोगों की धारणाएँ एवं मान्यताएँ बदली हैं। महिलाओं के कार्यक्षेत्र में वृद्धि हुई है। वह जीवन के हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं।
अमेरिका में सोशलिस्ट पार्टी के आह्वान पर, यह दिवस सबसे पहले 28 फ़रवरी 1909 को मनाया गया। तत्पश्चात, यह फरवरी के अंतिम रविवार के दिन मनाया जाने लगा। 1910 में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपेनहेगन के सम्मेलन में इसे अन्तर्राष्ट्रीय दर्जा दिया गया। उस समय इसका प्रमुख उद्देश्य महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिलवाना था क्योंकि उस समय अधिकतर देशों में महिलाओं को वोट देने का अधिकार नहीं था।
1917 में रूस की महिलाओं ने महिला दिवस पर रोटी और कपड़े के लिये हड़ताल पर जाने का फैसला किया। यह हड़ताल भी ऐतिहासिक थी। ज़ार ने सत्ता छोड़ी और अन्तरिम सरकार ने महिलाओं को वोट देने का अधिकार प्रदान किया । उस समय रूस में जुलियन कैलेंडर चलता था और बाकी दुनिया में ग्रेगेरियन कैलेंडर। इन दोनो की तारीखों में कुछ अन्तर है। जुलियन कैलेंडर के अनुसार 1917 के फरवरी माह का अंतिम रविवार 23 फ़रवरी को था जबकि ग्रेगेरियन कैलैंडर के अनुसार उस दिन 8 मार्च थी। आज पूरी दुनिया में ग्रेगेरियन कैलैंडर चलता है, इसीलिये 8 मार्च 'अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस' के रूप में मनाया जाता है।
आकाशवाणी के कानपुर केंद्र पर वर्ष १९९३ से उद्घोषक के रूप में सेवाएं प्रदान कर रहा हूँ. रेडियो के दैनिक कार्यक्रमों के अतिरिक्त अब तक कई रेडियो नाटक एवं कार्यक्रम श्रृंखला लिखने का अवसर प्राप्त हो चुका है. D