आजकल शहर की मलयसमीरों में एक अजब सी सुगंध बह रही है और अगर आप इस सुगंध का नाम जानने की जिज्ञासा से सराबोर हैं तो आपको बता दें इस सुगंध का नाम है 'टेककृति-२०१५'. केवल आई.आई.टी. संस्थान ही नहीं बल्कि पूरे शहर में इस कार्यक्रम की धूम मची हुई है. पूरा संस्थान विभिन्न कृतियों, टेककृतियो, रचनाओ-ऋचाओं, रंग और जायकों से भरा हुआ. इस कार्यक्रम के होने से मानो यहाँ की हवाओं में भी कुछ अद्भुत परिवर्तन तो आया है; यानी थोड़ी ज़्यादा मीठी लगने लगी है समीर.
इस कार्यक्रम से यहाँ के विद्यार्थियों में एक नई उमंग का संचार हुआ है. चारो ओर विद्यार्थी अपने मित्र-संघ के साथ इस कार्यक्रम का भरपूर आनंद ले रहे हैं.
कहीं नवीन टेककृति तो कहीं संगीत की धुनें, कहीं दीवारों पर बानी रंगों की कलाकृतियां तो कहीं नवीनतम विधाओं के रंग...जिन्हें बार-बार देखने को जी चाहता है. वास्तव में ये एक अद्भुत कार्यक्रम है जिसने पूरे शहर को अपनी ओर आकर्षित कर रखा है.
साथ ही साथ मैं 'शब्दनगरी' को बहुत-बहुत धन्यवाद देना चाहूंगा की इस संगठन ने नवीन विधाओं के साथ-साथ हिंदी को भी विशिष्ट स्थान प्रदान किया और लोगों का ध्यान इस ओर आकर्षित किया कि अब अपने ह्रदय के उद्गारों को अपनी मातृ-भाषा हिंदी में व्यक्त करने हेतु 'शब्दनगरी' मंच सभी का स्वागत करता है, जिसके माध्यम से आप इंटरनेट पर अपनी पहचान हिंदी में सरलता से बना सकते हैं.
यह लेख आई.आई.टी. के टेककृति २०१५ महोत्सव में 'शब्दनगरी' द्वारा आयोजित समीक्षा लेखन प्रतियोगिता में, प्रतिभागी श्रेयस शर्मा द्वारा लिखा गया जिन्हें 'शब्दनगरी' ने द्वितीय पुरस्कार से सम्मानित किया.
आकाशवाणी के कानपुर केंद्र पर वर्ष १९९३ से उद्घोषक के रूप में सेवाएं प्रदान कर रहा हूँ. रेडियो के दैनिक कार्यक्रमों के अतिरिक्त अब तक कई रेडियो नाटक एवं कार्यक्रम श्रृंखला लिखने का अवसर प्राप्त हो चुका है. D