सच्ची जुबान वही है,जो अंधेरे के बारे में भी बोले और उजाले के बारे में भी। यह अंधेरा-उजाला ही भाषा में जादू पैदा करता है। उक्त बातें साहित्य अकादमी की ओर से आयोजित अर्पण कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में व्याख्यान देते हुए विख्यात उर्दू विद्वान एवं अकादमी के महत्तर सदस्य प्रो. गोपीचंद नारंग ने व्यक्त कीं। उन्होंने सूर, कबीर, तुलसी और गालिब की रचनाओं से उदाहरण देते हुए कहा कि भाषाएं हमेशा जोड़ने का काम करती हैं। खुदा ने हमको एक जमीन और एक भाषा दी थी, लेकिन हमने अपनी-अपनी भाषाओं के अलग-अलग इतने खुदा बना लिए हैं कि हम एक-दूसरे को भाई-चारे का संदेश देने की बजाये लड़ाई-झगड़े पर आमादा हैं। फिक्की सभागार में आयोजित समारोह में मंगलवार को साहित्य अकादमी पुरस्कार-2015 प्रसिद्ध साहित्यकार रामदरश मिश्र को प्रदान किया गया। समारोह के अध्यक्ष विश्वनाथ तिवारी ने कहा कि कोई भी भाषा बड़ी या छोटी नहीं होती। भाषा जिस परिवेश की होती है, उसके बारे में उससे अच्छा कोई और भाषा व्यक्त नहीं कर सकती। उन्होंने निराला और भोजपुरी कवि स्वर्गीय जनार्दन पांडे की कविताओं के भी उदाहरण दिए। उन्होंने अंग्रेजी, हिंदी, उर्दू आदि कई कवियों की रचनाओं से उदाहरण देकर अपनी बात प्रामाणित करने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि हमें पश्चिम के भाषाई आतंक से प्रभावित होकर रचनाएं लिखने की जरूरत नहीं है। हमें मुक्त होकर, निर्भय होकर लिखना होगा। लेखक का काम सत्ता बनना नहीं या धाक जमाना नहीं। लेखक का मूल्यांकन उसकी रचना से होता है, पद से नहीं। उन्होंने वर्तमान समाज में व्याप्त हिंसा, असमानता और पर्यावरण संबंधी समस्याओं पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि हमारे लेखकों के सामने भी सबसे बड़ी चुनौती यही है कि इन मुश्किलों से कैसे लड़ा जाए।
(साभार : दैनिक जागरण)