ज़िन्दगी,
अगर एक नाटक है,
तो इस नाटक पर यक़ीन कर लूँ
और जो कुछ जैसा होता है
क़ुबूल कर लूँ .
और 'गर ना हो यक़ीन
तो तसल्ली कर लूँ
फिर भी जब-जब
जैसा जो कुछ होता है
जैसा जो कुछ होना है
बदल सका कुछ
तो बताऊंगा.
-ओम प्रकाश शर्मा
आकाशवाणी के कानपुर केंद्र पर वर्ष १९९३ से उद्घोषक के रूप में सेवाएं प्रदान कर रहा हूँ. रेडियो के दैनिक कार्यक्रमों के अतिरिक्त अब तक कई रेडियो नाटक एवं कार्यक्रम श्रृंखला लिखने का अवसर प्राप्त हो चुका है. D