कोई ज़िन्दा आदमी से डरे ये बात तो समझ आती है, लेकिन मुर्दा भी भयभीत करे...ऐसा क्यों होता है ? हम अच्छी तरह से जानते हैं कि मृत शरीर दुर्गन्ध देने के सिवा और कुछ नहीं कर सकता I वह हाथ बढ़ा कर हमें छू भी नहीं सकता I हम उसे घूंसे भी मारें तो भी वह टस से मस नहीं होने वाला I फिर भी, मुर्दा नामक भय का भूत ग़ज़ब का डरावना लगता है I
हाल ही में ये चर्चा थी कि एक मेडिकल कॉलेज के कुछ छात्र एनॉटमी विभाग में रखे शवों से पहली बार रूबरू होकर इतना डर गए कि किसी को बुखार आ गया तो किसी ने दो दिन तक खाना नहीं खाया I डेड बॉडी के डिसेक्शन के लिए छात्र जैसे ही नाइफ और सीज़र्स उठाएं, वो कांपने लगते थे, और औज़ार उनके हाथों से छूट जाते थे ।
दरअसल, मेडिकल के फर्स्ट-इयर स्टूडेंट्स को ज़्यादातर समय एनॉटमी विभाग में बिताना पड़ता है जिसमें कई कंकाल रखे होते हैं i छात्रों को जिन शवों पर स्टडी कराई जाती हैं वो क़रीब दो साल पुराने होते हैं i उनका शरीर अकड़ा होता है और उनके हाथ-पैर सामान्य रूप में नहीं होते हैं । इस तरह पहली बार उन्हें देखकर छात्र डर जाते हैं ।
हॉस्टल के कर्मचारियों ने उन्हें कुछ नुस्ख़े बताए I उन्हें बताया कि शुरू-शुरू में ऐसा होता है । एनॉटमी लैब में कुछ रूहें हैं, जो स्टूडेंट्स को ऐसे ही परेशान करती हैं । लेकिन, सिन्दूर, चुनरी और बताशे चढ़ाने के बाद मान जाती हैं । बस, धूप-अगरबत्ती जला कर उनके सामने हाथ जोड़कर प्रार्थना करनी होगी । फिर आराम से चीर-फाड़ करो, कोई दिक्कत नहीं होगी I नतीजतन, हॉस्टल के कमरों में अपने बचाव के लिए छात्र टोने-टोटके करने लगे I
सच कुछ भी हो, लेकिन सवाल यह है कि इंसान डरे तो जीते-जागते आदमी से; मुर्दे से भला काहे का डर? रूहें होती हैं कि नहीं, भूत होते हैं कि नहीं...मनोवैज्ञानिकों की तमाम दलीलों और दावों के बावजूद ये सवाल इंसान को हमेशा से परेशान करते आए हैं । अगर ढूंढें तो किस्से ये भी मिल जाएँगे कि किसी रूह ने किसी के घर चोरी की, कहीं डाका डाला या किसी की आबरू तार-तार की; फिर भी ज़िन्दा आदमी की तुलना में ऐसी स्टोरीज़ कम ही मिलेंगी i कहना बस इतना ही है कि किसी भी उम्र का, किसी भी पेशे से जुड़ा आदमी बस आदमी से ही डरे । आदमी जब महानता करता है तो देवी-देवताओं के सदृश नज़र आता है और जब हैवानियत पर आमादा होता है तो भूत-प्रेतों को भी पीछे छोड़ देता है । यक़ीन जानिए, आज जीते-जागते इंसान का सिर्फ़ इंसान बने रहना ही दुश्वार हो गया है; अब ऐसे वक़्त में मुर्दा क्या ख़ाक करेगा !