डॉ. राजेन्द्र प्रसाद बारह वर्ष राष्ट्रपति भवन में रहे. इस दौरान इस भवन की राजसी भव्यता में जैसे एक सुरुचिपूर्ण सादगी घुल गयी थी I उनका एक पुराना नौकर था जिसका नाम था तुलसी I एक दिन साफ़-सफाई करते समय उसके हाथ से एक बहुमूल्य हाथी दांत का पेन ज़मीन पर गिरकर टूट गया जिसकी स्याही से कालीन गंदी हो गयी I इस बात से राजेंद्र प्रसाद बहुत नाराज़ हुए क्योंकि वह क़लम उन्हें किसी ने बड़े प्रेम से भेंट किया था और वह पेन उन्हें बहुत पसंद था I उन्होंने तुरन्त तुलसी को हटाने की घोषणा कर दी I
उस दिन वह बहुत व्यस्त रहे. कई प्रतिष्ठित व्यक्ति और विदेशी पदाधिकारी उनसे मिलने आए I लेकिन तमाम व्यस्तता के बावजूद, क़लम टूटने की घटना और तुलसी के प्रति उनकी नाराजगी उन्हें दिन भर चुभती रही I उन्हें बार-बार यह एहसास हो रहा था कि उन्होंने तुलसी के साथ अन्याय किया Iथोड़ी देर बाद उन्हें जैसे ही मिलने वालों से फुरसत मिली, उन्होंने तुलसी को अपने कमरे में बुलाया I तुलसी डरा-सहमा उनके कमरे में आया I उसने देखा कि राजेंद्र प्रसाद सिर झुकाए हाथ जोड़े उसके सामने खड़े हैं I उससे बोले, “तुलसी, मुझे माफ़ कर दो I”
तुलसी भौचक्का होकर उन्हें देखता रह गया I अत्यंत विनम्रता से उन्होंने दोहराया, “तुलसी, मुझे माफ़ नहीं करोगे ?” सेवक और स्वामी दोनों की आँखों में आँसू आ गए I