3 अक्टूबर 2015
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आकाशवाणी के कानपुर केंद्र पर वर्ष १९९३ से उद्घोषक के रूप में सेवाएं प्रदान कर रहा हूँ. रेडियो के दैनिक कार्यक्रमों के अतिरिक्त अब तक कई रेडियो नाटक एवं कार्यक्रम श्रृंखला लिखने का अवसर प्राप्त हो चुका है. D
धन्यवाद, योगिता जी !
14 अक्टूबर 2015
गाँव के झोपड़े भी हो सकते हैं रोशन,…सुन्दर रचना ओम प्रकाश जी |
9 अक्टूबर 2015
सच कहा मंजू जी, रचना पर दो घड़ी समय देने के लिए धन्यवाद !
5 अक्टूबर 2015
धन्यवाद, अवधेश जी !
5 अक्टूबर 2015
धन्यवाद, अर्चना जी !
5 अक्टूबर 2015
जीस्त है मज़ा, दिल जब तक है बच्चा, देखना, वो चुपके से जवाँ’ न हो जाए ,बहुत ही सुन्दर ,बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बधाई !
4 अक्टूबर 2015
’गर आदमी थोड़ा सा नादाँ’ हो जाए, हर शख्स का जीना आसाँ’ हो जाए ।........सुन्दर अल्फाज़ और अहसास
3 अक्टूबर 2015