वसंत पंचमी वसंत की आरम्भिकी है I वसंत प्रेम का ऐसा कुम्भ है जहाँ हम सजीवन स्नान करते रहते हैं I माघ शुक्ल पंचमी से ऐसी रसवती धारा चलती है जिसमें संगीत, साहित्य, कलाएँ अवगाहन करती रहती हैं I इस दिन को अबूझ मुहूर्त वाला भी माना जाता है यानी, सब कुछ शुभ व मांगलिक I वसंत, कविता व कला का घर है I प्रत्येक पुष्प, प्रत्येक पत्ती कविता पाठ करती है, यदि आप सुनें तो I हमारी आभा का सर्वोत्तम प्राण केन्द्र वसंत है I केवल कवि की कल्पना में ही वसंत रमणीय नहीं है, सचमुच में वसंत के आगमन से प्रकृति रम्य लगती है I पर्यावरण व पारिस्थितिकी भी सम हो जाते हैं I शीत व ग्रीष्म का मध्यमार्ग I चन्द्रमा की दुग्ध स्निग्ध ज्योत्सना, कोयल की कूक, सुमनों का सौरभ, अशोक की सुषमा सभी इस समय आह्लादकारी लगते हैं I हरित संहिता में लिखा है-वसंत के समय प्रमुदित कोकिलों की कूक से अरण्य, उद्यान गूँज उठते हैं I वन-उपवन तथा पर्वत श्रेणियाँ फूलों के सुवास से सुवासित हो उठती हैं I संगीत दामोदर के अनुसार छह राग व छत्तीस रागिनियाँ हैं I इन रागों के मध्य वसंत एक राग है I कहते हैं कि वसंत पंचमी को वसंत राग को सुनना अभीष्ट को पाना है I वसंत पंचमी से सरस्वती का वृहद् हेतु है I सरस्वती के आठ अंग हैं-लक्ष्मी, मेधा, धरा, पुष्टि, गौरी, तुष्टि, प्रभा व धृति I ‘निराला’ ने भी जब ‘वर दे, वीणा वादिनि वर दे’ लिखा होगा, उसके पहले उनके संस्कार में सरस्वती का दशाक्षर मन्त्र रहा होगा I
वसंत ऋतु पुराकाल से आज तक मनुष्य को सम्मोहित करती रही है I आज से होली के गीत प्रारम्भ हो जाते हैं I यदि वसंत हमारे भीतर के राग का रूपक है तो उसे पृथ्वी पर सुरक्षित रखना हमारा उत्तर आधुनिक कर्तव्य I वन समाप्त हो रहे हैं I उत्तर आधुनिक, औद्योगिक, महानगरीय समय को देखते हुए वसंत ऋतु हमसे प्रश्न करती है I वह जानना चाहती है कि मनुष्य से मनुष्य, मनुष्य से समाज का विलगीकरण कहाँ तक जाएगा I आकाश, तारे, वृक्ष, धरती के गीत, नदी के सहस्रशीर्ष स्नान से हमारे सम्बन्ध अजनबी की तरह होंगे I क्या हमारी नई विचार प्रणाली ने कुम्भ के स्नान को मात्र पारम्परिक व अतार्किक रूप में निरूपित करना शुरू कर दिया है I अपने दोष न ढकें, पर अपनी पृथ्वी व विचार के सौंदर्यशास्त्र को प्रगाढ़ता से रखें I
-परिचय दास
(साभार: दैनिक जागरण)