समाज के हर वर्ग के लोग आत्महत्या के शिकार होते हैं। अमीर-गरीब, पढ़े-लिखे और अनपढ़, महत्वाकांक्षी और आत्मसंतुष्ट... कोई पैमाना नहीं कि इस काल के गाल में कौन गिरता है। सर्वमान्य है कि कोई भी समस्या ऐसी नहीं जिसका हल न हो। फिर सवाल यह है कि क्या स्वयं का जीवन समाप्त करने वालों को इससे बचाया जा सकता है ?