(व्यंग्यकार शरद जोशी)
21 मई, 1931 को उज्जैन, मध्य प्रदेश में जन्मे शरद जोशी का नाम हिंदी के प्रमुख व्यंग्यकारों में शुमार है । आपके प्रमुख व्यंग्य संग्रह हैं— परिक्रमा, किसी बहाने, तिलिस्म, रहा किनारे बैठ, मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ, दूसरी सतह, हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे, यथासंभव और जीप पर सवार इल्लियाँ । आपकी लिखी फिल्में हैं—क्षितिज, छोटी-सी बात, सांच को आंच नही, गोधूलि और उत्सव । आपके लिखे टी.वी. धारावाहिक 'ये जो है जिन्दगी', 'विक्रम बेताल', 'सिंहासन बत्तीसी', 'वाह जनाब', 'देवी जी', 'प्याले में तूफान', 'दाने अनार के' और 'ये दुनिया गजब की' बेहद लोकप्रिय हुए । आइए आनन्द लेते हैं, शरद जोशी के लिखे एक बहुत ही खूबसूरत व्यंग्य का, शीर्षक है 'जिसके हम मामा हैं'… एक सज्जन बनारस पहुँचे। स्टेशन पर उतरे ही थे कि एक लड़का दौड़ता आया। 'मामाजी! मामाजी!' - लड़के ने लपक कर चरण छुए। वे पहचाने नहीं। बोले - 'तुम कौन?' 'मैं मुन्ना। आप पहचाने नहीं मुझे?' 'मुन्ना?' वे सोचने लगे। 'हाँ, मुन्ना। भूल गए आप मामाजी! खैर, कोई बात नहीं, इतने साल भी तो हो गए।' 'तुम यहाँ कैसे?' 'मैं आजकल यहीं हूँ।' 'अच्छा।' 'हाँ।' मामाजी अपने भान्जे के साथ बनारस घूमने लगे। चलो, कोई साथ तो मिला। कभी इस मंदिर, कभी उस मंदिर। फिर पहुँचे गंगाघाट। सोचा, नहा लें। 'मुन्ना, नहा लें?' 'जरूर नहाइए मामाजी! बनारस आए हैं और नहाएँगे नहीं, यह कैसे हो सकता है?' मामाजी ने गंगा में डुबकी लगाई। हर-हर गंगे। बाहर निकले तो सामान गायब, कपड़े गायब! लड़का... मुन्ना भी गायब! 'मुन्ना... ए मुन्ना!' मगर मुन्ना वहाँ हो तो मिले। वे तौलिया लपेट कर खड़े हैं। 'क्यों भाई साहब, आपने मुन्ना को देखा है?' 'कौन मुन्ना?' 'वही जिसके हम मामा हैं।' 'मैं समझा नहीं।' 'अरे, हम जिसके मामा हैं वो मुन्ना।' वे तौलिया लपेटे यहाँ से वहाँ दौड़ते रहे। मुन्ना नहीं मिला। भारतीय नागरिक और भारतीय वोटर के नाते हमारी यही स्थिति है मित्रो! चुनाव के मौसम में कोई आता है और हमारे चरणों में गिर जाता है। मुझे नहीं पहचाना मैं चुनाव का उम्मीदवार। होनेवाला एम.पी.। मुझे नहीं पहचाना? आप प्रजातंत्र की गंगा में डुबकी लगाते हैं। बाहर निकलने पर आप देखते हैं कि वह शख्स जो कल आपके चरण छूता था, आपका वोट लेकर गायब हो गया। वोटों की पूरी पेटी लेकर भाग गया। समस्याओं के घाट पर हम तौलिया लपेटे खड़े हैं। सबसे पूछ रहे हैं - क्यों साहब, वह कहीं आपको नजर आया? अरे वही, जिसके हम वोटर हैं। वही, जिसके हम मामा हैं। पाँच साल इसी तरह तौलिया लपेटे, घाट पर खड़े बीत जाते हैं। —शरद जोशी