घटना सहरसा बिहार की है । डॉ. लोहिया सहरसा स्टेशन पर अपने एक साथी के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे । ट्रेन आई तो डाक का डिब्बा उनके सामने आ खड़ा हुआ । आर.एम्.एस. का डाकिया जब थैले निकाल रहा था तो किसी कारण थैले का मुँह खुल गया और उसकी चिट्ठियां बाहर प्लेटफ़ॉर्म पर बिखर गईं । दुखी डाकिया बिखरी चिट्ठियाँ बटोरने लगा । डॉ. राम मनोहर लोहिया उसकी सहायता करने के उद्देश्य से स्वयं बिखरी चिट्ठियाँ बटोरने लगे । इस पर डाकिये ने कहा, “अरे, अरे! आप रहने दें ! यह काम हम जैसे छोटे लोगों का है । इस पर वह बोले, “काम, काम है । कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता I”