आज सौरभ सिंघानिया अपने आप को इतना गरीब महसूस कर रहा था, मानो उसके पास कुछ भी ना हो उसके हाथ पूरी तरह से खाली हो।
सौरभ सिंघानिया जैसा शख्स आज नजर नीचे करके बैठा था । जो उसकी फितरत के खिलाफ थी, जिस सौरभ सिंघानिया के सामने ज्यादा देर तक खड़े रहने की किसी की हिम्मत नहीं होती थी।
वह आज अपराध बोध महसूस कर रहा था, नव्या की बहनों की बातें सुनकर सौरभ खुद को अपराधी मान रहा थाl उसने कभी यह सब सोचा ही नहीं था, कि समाज के लोगों का भी सामना करना पड़ता है।
समाज ही नहीं परिवार नाते रिश्तेदार सभी का सामना व्यक्ति को करना पड़ता है। सौरभ का समाज तो बना बनाया था, जहां उसके आगे पीछे घूमने वाले सैकड़ों लोग थे, ।
जो उसकी चापलूसी में दिन रात लगे रहते थे। सौरभ का यह समाज उसे विरासत में मिला था उसने इसको आगे ले जाकर बड़ा कर दिया लेकिन उसके लिए उसने कभी स्ट्रगल नहीं कियाl
नव्या की बहनों की बातों के आगे वह कुछ बोल नहीं सका उसकी आंखें भर आई वह बहुत कुछ कहना चाहता था किंतु उसके मुंह से एक शब्द ना फूटा।
नव्या की माँ ने जैसे ही सौरभ की ओर देखा तो वह उनका सामना ना कर सका ,और मां से माफी मांगने के बाद वह वहां से उठकर चला गया ,
इधर नव्या के साथ पहली बार किसी ने इस तरह की हरकत की थी ,वह एकदम बदहवास सी हो जाती है ।जिस हाथ को सौरभ ने जबरदस्ती पकड़ा था।
उसे बार-बार साबुन से हाथ धोती और फिर बच्चों की तरह असहाय होकर रोने लगती। तभी मां और नव्या की दोनों बहने ऊपर नव्या के कमरे में आती हैं।(परिवार व्यक्ति को टूटने से बचा लेता है उसे मजबूती प्रदान करता है ।)
नव्या को इस तरह फूट-फूट कर रोते देख नव्या की बहनें पूछती हैं क्या हुआ? दीदी, नव्या कुछ नहीं कहती बस रोती रहती है ।
तभी नव्या की मां पूछती हैं ,सौरभ ने फिर कुछ किया क्या ?नव्या गुस्से से मत लो उसका नाम मेरे सामने नफरत है ,मुझे उस शख्स से मैं उसको देखना भी पसंद नहीं करती नव्या की मां कहती है अगर तुझे उस शख्स से घृणा है।
तो उतारो मंगलसूत्र पोंछ लो मांग का सिंदूर क्यों ऐसे व्यक्ति से नाम मात्र का रिश्ता रखना जिसने तुम्हें इतनी पीड़ा पहुंचाई नव्या उग्र होकर कहती है। मां मैं ऐसा नहीं कर सकती,मां कहती क्यों?
क्योंकि जब जब मैं यह मंगलसूत्र देखती हूं,तब तब मुझे और आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है और अपनी मांग में सजा यह सिंदूर देखकर सौरभ सिंघानिया को जमीन पर धूल चटाने की खुशी मिलती है ।
।इसी कारण मैंने यह सब चीजें नहीं उतारी और ना उतारूगी। और सौरभ अपने घर पहुंच कर सीधे ग्रैनी के कमरे में जाता है अपने कपड़े उतार कर बिस्तर पर फेंक देता है ।
ग्रैनी के कमरे में ग्रैनी उसकी यह हरकत चुपचाप देखती रहती है। आज ग्रैनी समझ जाती है कि कुछ ना कुछ तो हुआ ही होगा, बूढ़ी आंखें चीजों को बहुत जल्दी ताड़ जाती है।
सौरभ ग्रैनी के पास जाकर कहता है ग्रैनी मैं इतना बुरा नहीं हूं कि मेरे कारण जिंदगियां बर्बाद हो जाएं।, ग्रैनी सौरभ को समझाती है।
शांत हो जाओ बेटा, इसमें किसी का कोई दोष नहीं वह तो समय का चक्र है ।कभी किसी को किसी ओर ले जाता है और कभी किसी ओर गैनी मैंने गलत तो किया ना लेकिन बेटा अब तू कर ही क्या सकता है।
मैं यह नहीं कहती कि तूने सब सही किया किंतु उस समय की परिस्थिति और हालात भी इसके लिए जिम्मेदार हैं ।क्या तू अब वह सौरभ सिंघानिया रहा जो पहले था।
सौरभ बोला ग्रैनी मुझे तो अंदाजा ही नहीं था कि नव्या ने कितने दुख सहे आज मैं उसकी मां और बहनों से मिलकर आ रहा हूं, ग्रैनी बोली बेटा तुम बीता समय वापस तो नहीं ला सकते ,किंतु जो समय चल रहा है ,और जो समय आने वाला है उसको सुधार तो सकते होअपने पश्चाताप द्वारा ,,,,,
सौरभ बोला मैं तो कब से पश्चाताप करने को तैयार हूं किंतु कोई मुझे उपाय नहीं सूझ रहा है। ग्रैनी बोली तू किसी भी तरह कुछ भी करके नव्या का दिल जीत ले ,तो तू उसका प्यार भी पा जाएगा,
सौरभ बोला मैं कोशिश तो कर रहा हूं ,कितना अपने आप को मैंने बदल लिया किंतु लोगों के मन में मेरी जो इमेज बन गई है वह हट ही नहीं रही है मैं करूं तो क्या करूं?
ग्रैनी बोली अपने आप को समय दें सब ठीक हो जाएगा वक्त बड़े बड़े घाव भर देता है। नव्या सोचती है ,अभी के अभी मैं चेयर पर्सन को फोन करके इस प्रोजेक्ट से अपने आपको अलग कर देती हूं ।
मैं उस आदमी के साथ काम नहीं कर सकती गुस्से में उठी और चेयर पर्सन को फोन मिलाया दूसरी तरफ चेयर पर्सन बोले हां नव्या सौरभ सिंघानिया जी बोलिए प्लीज नव्या सौरभ सिंघानिया का नाम सुनते ही फोन कट कर देती है ।
और कपड़े चेंज करके चुपचाप लेट जाती हैं ,नव्या की मां बोली बेटी कुछ खा लो नहीं तो सो जाओगी नव्या बोली मां मुझे बिल्कुल भूख नहीं है।
मुझे कुछ नहीं खाना नव्या की मां पीछे पीछे लगी रहती हैं ।और बड़ी मुश्किल से किसी तरह एक रोटी नव्या को खिला देती है।
नव्या खाना खाते समय अपने हाथों को देखती है, और फिर सोचती है। कि कल मैं कैसे उस व्यक्ति का सामना कर पाऊंगी फिर सोचती है जब तक सब लोग रहेंगे तब तक मैं काम करूंगी ,उसके बाद मैं घर लाकर काम कर लूंगी ,लेकिन इस शख्स के साथ अकेले नहीं रहूंगी!!
दूसरे दिन सुबह सुबह नहा धोकर नव्या तैयार होने लगती है ।उधर सौरभ भी तैयार होकर मीनल के साथ ऑफिस पहुंच जाता है।
नव्या अपने सेक्रेटरी अमन वर्मा को फोन करती है मिस्टर अमन वर्मा बताते हैं, कि आज उनकी तबीयत कुछ खराब है इसलिए वे ऑफिस नहीं आ पाएंगे नव्या गुस्से से कहती है आपने पहले क्यों नहीं बताया मिस्टर अमन बोले मैडम जरूरी हो तो दवा खा कर चलूं नव्या कहती है ।
अब रहने दो मैं अकेले ही चली जाऊंगी ड्राइवर गाड़ी का हॉर्न बजाता है नव्या बालकनी से देखती है. और सीढ़ियों से धीरे-धीरे नीचे आ जाती है।
क्या नव्या सौरभ का सामना कर पाएंगी जाने तड़प तेरे प्यार की ए
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