सौरभ नव्या के पीछे पीछे उसके बेड के पास तक आता है, जैसे ही नव्या के सिर को हाथ लगाता है तभी नव्या जोर से चिल्लाती है ।
दूर रहो मुझसे दूर हो जाओ मेरी नजरों से मेरी जिंदगी से ,मैं तुम्हारी शक्ल भी देखना पसंद नहीं करती। सौरभ नव्या को जितना समझाने की कोशिश करता है नव्या उतना ही ज्यादा और गुस्सा होती जाती है,।
रोते-रोते नव्या की सिसकियां बंध जाती है। सौरभ उसकी यह हालत देखकर अपने आप में बहुत शर्मिंदा हो रहा था, उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था, कि किसी को वह इतना दुख दे सकता है।
, दूर खड़े होकर सौरभ ने धीरे से कहा क्या सजा देना चाहती हो दो मुझे, तुम मुझे भी ऐसी ही सजा दो जैसी मैंने तुम्हें दी है । नव्या सौरभ को देखकर कहती है ,सजा, क्या सजा दूं मैं आपकोॽ क्याॽ
आपको तो कल्पना भी नही है, आप तो कल्पना भी नहीं कर सकते कि आपने मेरी जिंदगी को किस मोड़ पर ले जाकर छोड़ दिया, जहां एक बार तो मन किया कि इस जिंदगी को खत्म ही कर लूं, फिर दूसरे क्षण लगा कि मैं मर भी तो नहीं सकती ,क्योंकि मेरे ऊपर तो पूरे परिवार की जिम्मेदारी जो थी, ।
सौरभ नव्या के थोड़ा और करीब आया किंतु नव्या कहती है, दूर रहिए मुझसे मिस्टर सिंघानिया बस, हनी की शादी तक ही उसके बाद हमारे रास्ते और आपके रास्ते अलग-अलग हैं ।
सौरभ ने देखा नव्या इस समय बहुत ज्यादा गुस्से में है और बुरी तरह रो भी रही है वह समझ गया कि इस समय ना तो मैं नव्या को समझा पाऊंगा , न हीं मना पाऊंगा ,
इसलिए नव्या से दूर सोफे पर जाकर चुपचाप बैठ जाता है ,किंतु उसका मन नहीं मान रहा था कि एक रोती बिलखती लड़की को इस तरह बिना सांत्वना दिए चुपचाप बैठ जाने की लेकिन वह कुछ कर भी नहीं सकता था इसलिए चुपचाप जाकर सोफे पर लेट जाता है ।
थोड़ी देर बाद नव्या बिस्तर पर औंधे मुंह पड़ी रहती है, बहुत देर तक उसके रोने की आवाज आती रहती है। जाने क्यों आज वह बहुत कुछ सौरभ से कहना चाहती थी। लेकिन कह न सकी क्योंकि कई सालों का उसके मन में जो गुबार था, अभी निकला ही नहीं था।
किंतु रात ज्यादा बीत जाने के कारण और सौरभ के चुपचाप सोफे पर लेट जाने की वजह से नव्या चादर ओढ़ कर लेट जाती है, पुरानी यादें उसके दिमाग में चलचित्र की भांति चलती रहती हैं ।
और वह सोचती है ,क्या यह वही मिस्टर सौरभ सिंघानिया है जिसने मेरी पूरी जिंदगी बर्बाद कर दी और आज मेरे ही कमरे में मेरे ही साथ मेरे सोफे पर आराम से सो रहा है। और मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती,
बल्कि उसे तो मैंने ही कमरे में आने के लिए इनवाइट किया नव्या ऊपर भगवान को देखते हुए कहती है ।वाह रे भगवान॥ क्या किस्मत बनाई है ,करोड़ों में ऐसी यूनिक किस्मत तो मेरी ही हो सकती है,।
क्यों इतने लोगों में मेरी जैसी किस्मत किसी और की नहीं है नव्या सोचती है कि आज वह कितनी मजबूर हैं। यही सब सोचते सोचते नव्या को जाने कब नींद आ गई और वह जाने कब सो गई।
, किंतु सौरभ की आंख में नींद कहां? सौरभ को नव्या की रोती हुई आंखें ,दर्द से तड़पती आवाज और उसकी सिसकियां उसे सोना तो दूर चैन से जीने भी नहीं दे रही थी, वह सांस ले रहा था तो उसकी हर एक सांस उससे कह रही थी कि इन सब का कारण तो तुम ही हो ,,
,फिर सौरभ सोचता है कि नव्या मरने की बात क्यों कर रही थी मर तो मुझे जाना चाहिए आज सौरभ चाह कर भी नव्या को खुश नहीं कर पा रहा था, क्योंकि ना चाहते हुए भी नव्या के पुराने दर्द उभर कर नव्या के सामने आ गए थे ।
जिसके कारण वह बहुत ज्यादा दुखी हो गई थी सौरभ सोफे से चुपचाप उठा और धीरे-धीरे नव्या के बिस्तर के समीप आकर उसके सिरहाने चुपचाप खड़ा हो जाता है । कितनी शांत कितनी निश्चल सुंदर हो तुम,
नव्या निश्चिंत होकर बच्चों की भांति सो रही थी, काफी देर तक सौरभ उसको एकटक देखता रहता है । उसका मन और उसकी नजरें नव्या के चेहरे से हटती ही नहीं। और अपने मन में सौरभ यह निश्चय करता है, कि अब मैं तुम्हें कोई दुख नहीं दूंगा
किंतु अपने मन की बात तुमसे कह भी तो नहीं पा रहा हूं । मैं कैसे तुम्हें बताऊं कि मैं तुम्हें कितना प्यार करता हूं ,मैं तुम्हें कितना चाहता हूं तुम तो मेरी कोई बात सुनने को तैयार ही नहीं होती मैंने काम ही ऐसा किया कि अब तुम्हारा मुझ पर से विश्वास एकदम उठ गया ,लेकिन मेरा विश्वास करो मैंने जानबूझकर ऐसा कुछ नहीं किया,
तभी सौरभ ने देखा नव्या के बालों की एक लट उसके चेहरे पर आ जाती है जो उसके खूबसूरत चेहरे को और भी सुंदर बना रही है ।
सौरभ सोचता है कहीं बालों के कारण नव्या की नींद ना खुल जाए इसलिए उठ कर सौरभ धीरे से उसकी वह लट उठाकर पीछे कर देता है और चुपचाप दबे पाव आकर सोफे पर बैठ जाता है।
थोड़ी देर बैठे रहने के बाद वह नव्या की ओर एकटक देखता रहता है , और पिछली सारी बातें उसके दिमाग में चलती रहती है। सौरभ उसी सोफे पर लेट जाता है ,सुबह के टाइम जाने कब उसकी आंख लग जाती है,और वह सो जाता है। सो दोनों रहे थे लेकिन दोनों अलग-अलग भाव लेकर सो रहे थे नव्या सौरभ के सामने अपने कुछ भाव व्यक्त कर देती है ,जिससे सौरभ यह समझ जाता है कि निश्चित रूप से अब मैं ही नव्या का पति हूं और कोई दूसरा सौरभ सिंघानिया नहीं है जो कुछ नव्या के साथ बुरा हुआ वह मैंने ही किया और अब जो कुछ अच्छा होगा वह भी मैं ही करूंगा आखिर मैं उसका पति हूं पति होने के नाते मैं पति की सारी जिम्मेदारियां निभाऊंगा, और उसे इतना ज्यादा प्यार दूंगा कि इन बीते सालों की काली छाया उसे कभी याद नहीं आयेगी नव्यां की ओर देखकर सौरभ बोला मेरा अपने आप से वादा है।
आगे क्या हुआ जानने के लिए पढ़ते रहिए तड़प तेरे प्यार की और समीक्षा करके हमें यह जरूर बताइए कि हमारी यह कहानी आपके दिलों को छू रही है या नही 🙏🙏👍 क्रमशः।,।।