गाड़ी के हॉर्न की आवाज सुनकर नव्या नीचे आती है और मां को आवाज देती है मां मैं ऑफिस जा रही हूं मां दौड़ते दौड़ते आती है।
और कहती हैं बेटा यह टिफिन लेती जाओ कल रात को भी तुमने ठीक से खाना नहीं खाया था, मुझे तुम्हारी बड़ी चिंता हो रही है। नव्या का मन टिफिन ले जाने का बिल्कुल नहीं था, नव्या मां से कहती है, मैं कोई स्कूल थोड़ी जा रही हूं जो टिफिन लेकर जाऊं?
ऑफिस में बहुत सी चीजें हैं। मैं मंगा कर खा लूंगी लेकिन मां की इच्छा देखकर नव्या कुछ नहीं बोली और चुपचाप टिफिन रख लिया ड्राइवर से बोली चलो, पूरी रात नव्या इस उधेड़बुन में थी, कि मैं उस इंसान का सामना कैसे करूंगी जिसने मेरी नफरत को और बढ़ा दिया फिर मन में सोचती है, अब वह मेरा क्या बिगाड़ सकता है?
उसको जो करना था ,उसने कर लिया उसके सामने अब वह कमजोर नव्या नहीं है। बल्कि अब मजबूत नव्या उसके सामने खड़ी होगी, यही सोचते सोचते ऑफिस आ गया नव्या पूरे आत्मविश्वास के साथ कार से उतरी और सीधे ऑफिस के अंदर आई,
, एक नजर उठाकर उसने चारों तरफ देखा नीलेश और मिस्टर हर्षवर्धन के अलावा उसे कोई दिखाई न दिया निलेश नव्या को देखते ही कहता है।
हाय स्वीटहार्ट हाउ आर यू, नव्या उसको देख कर बस मुस्कुरा देती है। और अपनी कुर्सी पर जाकर बैठ जाती हैl तभी सामने से उसे मीनल आती दिखाई देती है, वह सोचती है आज यह अकेले आई है।
तभी मीनल के पीछे काला सूट पहने चेहरे पर काला चश्मा लगाए अपने चिर परिचित अंदाज में मिस्टर सौरभ सिंघानिया आते हैं।
सौरभ को देखते ही नव्या अपनी नजरें तुरंत अपने पेपर की ओर कर लेती है। सौरभ ऑफिस में घुसते ही हाय एवरीवन बोल के अपनी कुर्सी पर जा बैठते हैं।
, उसकी कल की हरकत के कारण नव्या के मन में उसके लिए एक अजीब सी चिढ़ पैदा हो गई थी। वह मन ही मन सोचती है चश्मा लगाकर अपने आपको और स्मार्ट समझ रहा है ।तमीज नाम की चीज में तो इसमें है ही नहीं,
आज सौरभ नव्या की ओर ध्यान भी नहीं देता, लेकिन उसका काम करने में भी मन नहीं लगता पेपर खोल कर बैठा जरूर रहता है।
लेकिन प्रोजेक्ट वर्क नहीं करता बीच-बीच में मिस मीनल से कहता है, मिस मीनल प्रोजेक्ट को ध्यान से देख कर पढ़िए और सावधानीपूर्वक उस पर काम करिए मीनल बोली सर आप तो देख ही रहे हैं।
सौरभ बोला जितना कहा जाए उतना करो मीनल बोली जी सर, सभी अपने-अपने काम में लगे रहते हैं ।निलेश लगातार कुछ न कुछ बोलता रहता है, उसका बोलना सौरभ को बिल्कुल पसंद नहीं था,
सौरभ को लगता था निलेश कुछ ज्यादा ही नव्या की जिंदगी में घुसने की कोशिश कर रहा है। क्योंकि सौरभ खुद इस टाइप का लड़का नहीं था वह एक सीरियस सिंसियर तथा गुस्सैल टाइप का था।
उसे किसी का सी लड़की से इस तरह बात करना पसंद ना था, खासतौर से नव्या से लेकिन सौरभ मन में सोचता है अभी तो मुझे यह भी क्लियर नहीं है कि नव्या मेरी पत्नी है या फिर विदेश में उसका कोई पति भी बैठा है। क्योंकि अकेले मैं ही सौरभ सिंघानिया तो हूं नहीं???
पहले कुछ भी करके मुझे यह पता लगाना ही पड़ेगा लेकिन कैसे पता लगाऊं ?किस से पूछूं नव्या से तो पूछ नहीं सकता वह तो उल्टा ही जवाब देती है।
नव्या की मां के सामने जाने की मेरी हिम्मत ही नहीं पड़ती, हां उसकी बहनों से तो पूछ सकता हूं, लेकिन कल उन्होंने जो कुछ नव्या के ऊपर बीता वह उनके मुंह से सुनने के बाद उनके सामने जाने की मेरी हिम्मत नहीं पड़ रही है ।
कहीं नव्या ने कल की बात अपनी बहनों को बता तो नहीं दिया? अगर बता दिया होगा तब तो मैं उसकी बहनों का सामना कैसे करुंगा ?
वैसे भी वह मुझे किसी खूंखार अपराधी से कम नहीं समझती । सौरभ यही सब सोच रहा था तभी चपरासी आता है । और पूछता है सर "चाय या कॉफी "सौरभ चौक जाता है। और वह घबराकर कहता है, कुछ भी ला दो उसके यह बोलने पर नव्या की नजर अनायास उसकी ओर चली जाती है ।
क्योंकि नव्या अच्छे से जानती थी सौरभ ना तो चाय पीता है ना कॉफी नव्या सोचती है हो सकता है, अब चाय कॉफी पीने लगा हो वक्त के साथ लोग बहुत बदल जाते हैं फिर अपने मन में कहती है, मैं ऐसा घटिया आदमी के बारे में क्यों सोच रही हूं, और अपने काम में लग जाती है।
थोड़ी देर बाद चपरासी चाय लेकर आता है ।मिस्टर हर्ष वर्धन नीलेश और सौरभ तीनों चाय का कप उठा लेते हैं नव्या नहीं लेती निलेश हंसकर कहता है ,स्वीटहार्ट बिना चीनी की चाय है पी लो ना नव्या बोली नहीं मुझे नहीं पीनी,निलेश फिर बोला चाय अच्छी है ।
नव्या ले लो, अबकी बार सौरभ से बर्दाश्त नहीं हुआ वह मन में सोचता है, (वाइफ मेरी है चिंता इसको हो रही है जाने कैसा आदमी है। अपने काम से काम नहीं रखता)
फिर सौरभ निलेश से बोला जब उन्होंने मना कर दिया कि नहीं पीना तो क्यों पीछे पड़े हैं। निलेश बोला जब भी मेरी नव्या की बात होती है ।तो आप उसमें बीच में जरूर आ जाते हो सौरव बोला मैं किसी के बीच में नहीं आया यहां लोग हमारे बीच आ जाते हैं ।
यह सुनकर नव्या उसकी तरफ देखती है फिर अपना मुंह घुमा लेती है। सौरभ को निलेश कि यह सब बेतुकी बातें अच्छी नहीं लगती थी। लेकिन नीलेश का वही स्वभाव ही था वह बिना बोले चुप रह ही नहीं सकता था खासतौर से नव्या को लेकर
, नव्या को वह मन ही मन शायद पसंद करता था । जब नीलेश की बातों में नव्या भी हां में हां मिलाती तो सौरभ जल उठता था। आज सौरभ नेअपने अपने मन में ठान लिया था कि वह किसी भी तरह यह पता लगाकर रहेगा की नव्या का पति कौन है ,???
वह खुद या फिर कोई और लंच का समय हो जाता है मिस्टर हर्षवर्धन और नीलेश खाना खाने कैंटीन की तरफ जाते हैं । नव्या अपनी जगह से नहीं हिलती और अपने काम में व्यस्त रहती है सौरभ से मीनल पूछती है ,सर आपका खाना लगवा दूं सौरभ कहता है।
मीनल आप लंच कर लीजिए मुझे भूख नहीं है। बहुत देर तक फाइलें देखने के बाद अचानक नव्या को याद आता है कि मैंने टिफिन लिया है । औरअपना बैग खोलकर उसमें से टिफिन निकालती है, मिस मीनल खाना खाने जा चुकी थी आज फिर ऑफिस में नव्या और सौरभ अकेले बचते हैं।
नव्या अपना टिफिन खोल कर बैठ जाती है, तभी सौरभ उठकर उसकी टेबल के पास आता है। और कहता है नव्या एम सॉरी कल मैं कुछ ज्यादा ही!!!!!! नव्या बीच में रोककर कहती है।
किस बात की सॉरी यह तो आपकी फितरत है ,नव्या तुम हमें गलत समझ रही हो नहीं बिल्कुल सही समझा मैंने आपको कल भी आप वही थे ,और आज भी वही सौरभ सिंघानिया है। सौरभ कहता है। मुझे माफ कर दो मुझे तुम्हारे साथ ऐसा नहीं करना चाहिए था, मैं तो तुम्हारी माफी के भी लायक नहीं हूं।
नव्या चुपचाप सब सुनती रहती है सौरभ अब उसके टिफिन की तरफ हाथ बढ़ाता है। नव्या हाथ से ही उसको को रोक देती है। और उठकर अपना टिफिन लेकर बाहर चली आती है सौरभ अकेला बैठा मन ही मन कहता है ।हमें एक मौका दे दो ना नव्या हम सब ठीक कर देंगे और उठ कर भी ऑफिस के बाहर चला जाता है।
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