कुछ चीजें हमारे आसपास ही होती है , लेकिन हमें वह दिखाई नहीं देती इसे हम क्या माने, सौरभ के अन्दर चल रहे उस एहसास को जो सबको नजर आ रहा था केवल जिसे वह दिखाना चाहता था,
उसको छोड़कर नव्या उसकी (तड़प) के एहसास को नहीं समझ रही थी और सौरभ नव्या के मन में चल रहे प्रतिशोध को जब जब दोनों सामने होते उनके एहसास आपस में टकराकर और मजबूत हो जाते ।
सौरभ नव्या को फोन करता है। नव्या किसी काम में व्यस्त रहतीं कई बार फोन नं उठने पर सौरभ थोड़ा परेशान होता है। तभी नव्या देखती है इतने सारे मिस कॉल वह समझ जाती है कि हो न हो ये मिस कॉल सौरभ की ही है।
और गुस्से से लाल हो पलटकर फोन मिलाती है । सौरभ फोन उठाकर जैसे ही हैलो बोलता है । नव्या एक सांस में कहती हैं।
मिस्टर सौरभ सिंघानिया तुमने अपने आपको समझ क्या रखा है। मैं चुप हूं उसे तुम मेरी कमजोरी मत समझना और अब मेरे पास फोन मत करना और हां आज शाम को मेरे आफिस में प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए आ जाना यह कहकर नव्या ने फोन रख दिया किंतु उसका पूरा बदन पसीने से भीग जाता है।
।वह धम्म से बिस्तर पर बैठ गई,उधर सौरभ ने तो ऐसे व्यवहार कि तो कल्पना भी नहीं की थी ।उसे तो यह समझ ही नहीं आ रहा था कि नव्या को कैसे पता चला कि वह फोन मैंने ही किया है।
लेकिन सौरभ को यह तसल्ली हुई कि कम से कम नव्या अब मेरे साथ काम करने को तैयार तो हुयी लेकिन इतनी जल्दी कैसे?
कहीं उसने चेयरपर्सन से बात तो नहीं कर ली खैर जो भी मेरे लिए तो यह अच्छा ही है। अब नव्या यह सोचकर परेशान हो उठती है।
कि मैंने गुस्से में कह तो दिया लेकिन मैं उस रईसजादे का सामना कर पाउंगी या नहीं फिर अपने मन को समझाती कि मैं कमजोर नहीं पड़ सकती मैं उसका सामना जरुर करुंगी।
उसी समय अशोक का फोन आता है, नव्या कहती हैं मिस्टर अशोक आपका होटल वाला काम कहा तक पहुंचा अशोक बोला मैडम मैंने यही बात बताने के लिए फोन किया है,
अमेरिका की कम्पनी ने हमारे कान्टैक्ट को कैन्सल कर दिया है जिसमें हमें करोड़ों रुपए का नुक़सान हो गया मैडम मैंने आपके कहने पर यह सब किया था ,मैं तो पूरी तरह से बर्बाद हो गया कहीं का भी न रहा (वो कहते है न कि धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का )
यह सब बातें सुनकर नव्या को एक बड़ा झटका लगता है। फिर भी अपने मन की बात छिपते हुए कहती हैं।आप परेशान मत होइए , धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा अशोक बोला कि क्या ठीक हो जाएगा?
इधर कान्टैक्ट हाथ से गया उधर कहीं सौरभ सर को सच्चाई पता चल गई तो मुझे तो पूरी उम्र जेल में ही काटनी पड़ेगी नव्या बोली मेरे और आपके अलावा किसी को इस बात की भनक भी नहीं है।
और मैं तो यह बात बताऊंगी नहीं फिर आप क्यों चिंता करते हैं। नव्या अशोक को पूरी तरह से आश्वस्त कर देती है कि सौरभ को कुछ पता नहीं चल पाएगा तब फोन रखती है।
लेकिन फिर खुद भी थोड़ा डर जाती है क्योंकि नुकसान बड़ा था और उससे भी बड़ा था सौरभ का गुस्सा जिससे वह भली भांति परिचित थी फिर आंख मूंदकर एक गहरी सांस लेकर भगवान से कहती है कि प्रभु अब आपकी कौन सी लीला है।
उधर सौरभ ने अपने सारे कामकाज पर ध्यान देना लगभग बंद ही कर दिया था।हर समय नव्या के ख्यालों में खोया रहता उसका सारा काम काज मैनेजर और सेकेट्री के भरोसे चल रहा था,मिस मीनल को शाम के प्रोजेक्ट की मीटिंग की कोई जानकारी नहीं थी,
वह तैयार होकर ग्रैनी से बोली आज शाम में सर को कोई मीटिंग नहीं है। चलिए मैं आपको घुमा लाऊं यह सुनकर ग्रैनी बोली मुझे जाने में कोई एतराज़ नहीं है।
फिर भी तुम एक बार सौरभ से पूछ लो तभी सौरभ वहां आता है और आते ही बोला मिस मीनल वो न्यू कान्टैक्ट की सारी फाइलें मेंटेन कर लीजिए आज शाम को उस पर प्रोजेक्ट पर काम शुरू होगा मीनल मुंह बनाकर ग्रैनी से बोली फिर किसी दिन चलूंगी।
ग्रैनी हंसते हुए बोली ठीक है। सौरभ अपने कमरे में आता है और अलमारी से अपने लिए खुद ही कपड़े निकालने लगता है।उसे समझ ही नही आता कि क्या पहने बड़ी मशक्कत के बाद उसने एक सेट निकाला और पूरी अलमारी तिमिर बितिर हो गई ,
तभी एक नौकर सौरभ के कमरे आया कमरे की दशा देखकर पूछता है। कि साहब कुछ चाहिए क्या ?कुछ ढ़ुढ रहे हैं क्या? सौरभ बोला नहीं मेरे जाने के बाद यह सब ठीक कर दीजिएगा
, वह जी सर कहकर वहां से चला गया। सौरभ फटाफट तैयार होता है। तैयार होकर जब नीचे आता है, तो ग्रैनी बोली आज तो मेरा प्रिन्स बहुत ही खुश नजर आ रहा है।
सौरभ बोला हां आज मैं अपनी प्रिन्सेज से मिलने जा रहा हूं।ग्रैनी बोली तेरे चेहरे की चमक से मुझे पता चल गया सौरभ के साथ उसकी सेक्रेटरी मीनल भी थी।
सौरभ के जाने के बाद भी बहुत देर तक कमरा सौरभ के डियो की खुशबू से सराबोर रहता है। कार में बैठते ही मीनल सोचती है कि इस तरह से तैयार और इतना खुश तो सर को कभी नहीं देखा ,
उधर नव्या बेमन से उठती है, और एक साड़ी निकाल कर पहन लेती है। तभी मिस्टर अमन का फोन आता है, नव्या कहती है आप आफिस पहुंचिए मैं भी पहुंचती हूं, और तैयार होकर आफिस के लिए निकल जाती है।मन पूरा आत्मविश्वास से भरा हुआ था, आफिस पहुंचकर देखती है ,अमन सामने ही मिल जाता है, जैसे ही वह गाड़ी से बाहर आती है ।
मिस्टर नीलेश बंसल को देखकर समझ जाती है कि ये भी इसी। प्रोजेक्ट में शेयर होल्डर है ।नव्या उनसे पहले भी मिल चुकी थी उसने मिल कर ही नव्या यह जान पायी थी, पैसे होने के बावजूद कोई व्यक्ति इतना सरल और दूसरे की मदद करने के लिए इतना तत्पर कैसे हो सकता है। नव्या को नीलेश की पर्सनालिटी अच्छी लगती है।
नीलेश नव्या के विषय मे ज्यादा कुछ जानता नहीं था ,न तो जानना चाहता था, बस वह मन ही मन इसी रुप में उसे पसन्द थी
आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए तड़प तेरे प्यार की 🙏🙏🙏 क्रमशः