सौरभ अपनी दादी को प्यार से ग्रैनी कहता था ,इसी कारण उसके ऑफिस तथा घर के सभी स्टाफ वाले ग्रैनी ही बुलाते थे,,,
,घर के किसी नौकर में इतनी हिम्मत ना थी कि सौरभ के गुस्से का सामना कर सके, इसलिए दादी ने सौरभ के पास जाने का फैसला किया।
ग्रैनी जैसी ही बालकनी में पहुंची बिना देखे सौरभ "गेट आउट''तभी दादी बोल उठी ,अपनी ग्रैनी को भी गेट आउट करेगा, सौरभ पलटा अरे! ग्रैनी मुझे बुला लिया होता ,
आपने आने की तकलीफ क्यों की, ग्रैनी बोली किससे बुलाती अब तेरे डर के कारण कोई तेरे पास आ ही नहीं रहा है। तभी बूढ़ीआंखों ने यह क्या देखा?
कि मेरे बाबा की आंखों में आंसू (दादी प्यार से सौरभ को बाबा कहती थी) इतना सुनते ही सौरभ सम्भला बोला नहीं ग्रैनी!'बोली तू मुझसे कुछ छुपा नहीं सकता, आज तो तुझे अवार्ड मिलने वाला था ,कहां है ?तेरा अवार्ड सौरभ अपने मन में बड़बड़ आने लगा (हां अवार्ड ही तो मिला है ,मेरा री अवार्ड )जो हम करते हैं ,कभी ना कभी हमारे सामने आकर खड़ा हो जाता है।
दादी बोली क्या बड़बड़ा रहा है ।जोर से बोल क्या हुआ बेटा, यह कह कर ग्रैनी ने सौरभ का सिर अपनी गोद में रख लिया और सिर सहलाते हुए बोलती हैं ।
अब बताओ क्या हुआ, सौरभ बोला ग्रैनी अरे आज नव्या मिली थी ग्रैनी खुश होती हुई क्या नव्या मिली थी भगवान का बहुत बड़ा शुक्र है कि वह मिल गई अब तू अपने किए की माफी मांग सकता है।
पता नहीं ग्रैनी उसका सामना करने की मेरी हिम्मत नहीं पड़ी मैं डर गया ग्रैनी वह मजबूत हो गई आज वह एक सफल बिजनेस वूमन है ।
ग्रैनी बोली बेटा शायद भगवान ने तुम्हें दोबारा मौका इसलिए दिया है ,कि तू चीजों को ठीक कर सके उसे बता सके कि तू कई अपराधों से अनजान था।
आज से तीन साल पहले का सौरभ और आज के सौरभ में जमीन आसमान का अंतर है यह सौरव बदल गया है इस सौरभ के अंदर प्रेम सम्मान आदर सब है।
मेरे बच्चे उसको यह सब तू ही बता सकता है और कोई नहीं कहां है नव्या वह ठीक तो है। सौरभ बोला पता नहीं ग्रैनी क्योंकि मैंने जो उसके साथ व्यवहार किया उसमें कोई कैसे खुश हो सकता है ।
फिर सौरभ अचानक चहककर कहता है। लेकिन ग्रैनी आज भी वह नव्या सौरभ सिंघानिया है सिंघानिया ग्रुप की मालकिन मेरे पूरे बिजनेस की एकमात्र मालिक मेरी मालिक इतना कहकर वह सिर पकड़ कर बैठ जाता है।
दादी उसके सिर को धीरे-धीरे सहलाने लगती है जाने कब सौरभ को नींद आ गई दादी अपने गोद से सौरभ का सर उतारती नहीं क्योंकि वह चित्र से जानती थी किन नव्या को सामने देखकर उसकी क्या दशा हुई होगी। उधर नव्या के हाथ पैर बिल्कुल ढीले पड़ गए थे थोड़ी देर बाद दोनों बहने निवि और हनी नव्या के कमरे से नीचे आ गई बस नव्या की मां सिर सहलाती बैठी रही, और नव्या भी बहुत देर तक रोते रोते सो गई उधर थोड़ी देर के बाद अचानक सौरभ की नींद टूट जाती है। फिर ग्रैनी को देखकर उठ कर बैठ जाता है अरे आपके पांव दुखने लगे होंगे ग्रैनी बोली नहीं बेटा बल्कि मुझे तो बहुत अच्छा लग रहा था तू इस तरह मेरी गोद में सोया था। दादी धीरे-धीरे अपने पैरों को सीधा करती हैं सौरभ उठा और सीधा ड्राइंग रूम की ओर जाने लगा तो ग्रैनी से कहता है मैं एक मिनट में आता हूं। और मैनेजर को फोन करके बुलाता है । जी साहब आपने बुलाया जी हां सौरभ बोला मैनेजर साहब मेरा एक काम है कल का अधिवेशन जो कि बेंगलुरु में था। जिसमें बिजनेस वूमेन का खिताब जिसने जीता था क्या नाम था उसका? (जानबूझकर अनजान बनता है) तभी मैनेजर तपाक से बोला नव्या सौरभ सिहानिया हां शायद यही नाम है। उनका फोन नंबर पता करके बताइए हमारी कम्पनी भी उनके साथ किसी प्रोजेक्ट पर काम कर सकती हैं। मैनेजर जी बिल्कुल कहकर चला जाता है। उधर नव्या रो रही थी, उसकी बहन हनी उसके कमरे में आती है, और नव्या के पास खड़ी होकर उसके माथे पर हाथ रखती है। तो माथा एकदम गरम रहता है, यह क्या? दीदी को तो बुखार है, और भागती हुई मां के पास जाती है मां- मां दीदी को बुखार है, नव्या की मां कहती है, कितना फूट फूट कर रो रही थी इसी कारण बुखार हुआ , हनी देख कोई बुखार की दवा हो तो ले ले और कुछ खाने के लिए बिस्किट वगैरह भी ले ले जब से आई है। बड़ी मुश्किल से एक घूंट पानी का पिया है ,बस रोए ही जा रही है। मां और हनी ऊपर नव्या के कमरे में जाती है नव्या उसी तरह बेसुध पड़ी सोती रहती है। उसकी मां ने उसे जगाना उचित न समझा और दवा तथा पानी का क्लास ढककर एक प्लेट में थोड़े से बिस्किट रखकर वापस चली आई हनी भी मां के साथ वापस चली आई थोड़ी देर बाद फोन की घंटी बजी नव्या बिना आख खोले ही हाथ बढ़ाकर मोबाइल टटोल ते हुए तकिए के पास से उठा लेती है। तथा धीमी आवाज में हेलो बोलती है। उधर थोड़ी देर तक कोई आवाज नहीं आती वह फिर बोली हेलो कौन बोल रहा है, फिर कोई उत्तर न सुनकर फोन रख देती है और धीरे से उठ कर बैठ जाती है। उसी शरीर में दर्द महसूस होता है। सामने पानी का ग्लास और दवा देखकर समझ जाती है कीमा ऊपर आई थी, तभी उसकी नजर घड़ी पर जाती है 4:00 बज रहे थें। ़ओ ,हो इतना टाइम हो गया मैं तो सो ही गई 5:00 बजे तो मेरी मीटिंग है वह उठने की कोशिश करती है। तभी फिर से फोन की घंटी बजती है वह उठाकर हेलो हेलो उधर से कोई आवाज नहीं आती फोन काट कर पता नहीं कौन परेशान कर रहा है, बार-बार फोन करके, इधर सौरभ बार बार फोन तो करता लेकिन कुछ बोलने की हिम्मत ना करता , नव्या की आवाज सुनकर वह आंख मूंदकर तड़प उठता है।और अपने मन में कहता है। नव्या मैं अपना प्रायश्चित करने को तैयार हूं, जो सजा दोगी वह मुझे मंजूर होगी। बस इसके बदले तुम मुझे माफ कर दो।
आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए "तड़प तेरे प्यार की "आप हमें जरूर बताइए कि यह कहानी आपको कैसी लगी 🙏