चुनावी संजीवनी
अनन्त राम श्रीवास्तव
युग बदले तो जमाना भी बदल गया त्रेतायुग युग से कलयुग आ गया। त्रेतायुग में राम रावण के मध्य युद्ध हुआ था कलयुग में लोकतंत्र के महापर्व चुनाव होता है। सत्ता पक्ष व विपक्ष के मध्य होने वाला चुनाव त्रेता युग में हुये राम रावण युद्ध से कम नहीं होता है। चुनाव जीतने के लिए सभी दल साम, दाम, दण्ड, भेद सभी का प्रयोग बेधड़क, बेगैरत और बेमुरव्वती से किया जाता है। इस सबके बावजूद टर्निंग प्वाइंट की भूमिका "संजीवनी" ही निभाती है। कलयुग में संजीवनी का महत्व तो वही है पर उसका हर बार स्वरूप बदल जाता है। चुनाव के समय संजीवनी का पता नहीं चलता। चुनाव समाप्त होने के बाद ही संजीवनी के स्वरूप का पता चल पाता है।
इस बार चुनाव के दौरान जब विपक्ष को संजीवनी का स्वरूप समझ नहीं आया तो संजीवनी लाने वाले बजरंगी के नाम पर बने दल के नाम को ही संजीवनी के रूप में प्रयोग करने का दाँव चलने का निर्णय कर उस पर प्रतिबंध लगाने का "ट्रंप कार्ड" चल दिया गया। सत्ता पक्ष ने चुनावी पिच पर फेंके गये बाँउसर को तुरंत कैच कर लिया। सत्ता पक्ष ने इस बाउँसर को कैच करने के साथ ही अपने हिसाब से मौडीफिकेशन कर ऐसी रिवर्स स्विंग मारी कि ऐसा लगने लगा कि जैसे विपक्ष रन आउट हो जायेगा। विपक्षी सूरमाओं के भी हाँथ पाँव फूलते नजर आने लगे।
सत्ता पक्ष ने समझा लक्ष्मण की तरह विपक्ष मूर्क्षित हो गया है। विपक्ष ने सत्ता पक्ष को मिले वाक ओवर का तोड़ निकाला और नया शब्द वाण चलते हुए अपने सेनापति व उसके परिवार की हत्या का आरोप सत्ता पक्ष पर मढ़ दिया। सत्ता पक्ष जब तक इसकी काट सोचता तब तक विपक्ष ने जगह जगह बजरंगी की मूर्तियां लगवाने का नया अस्त्र दाग दिया। सत्ता पक्ष ने तुरंत दिशा बदलते हुए "केरला स्टोरी" का विज्ञापन जारी कर दिया। अब मतदान करीब है अतः अभी कुछ कहा नहीं जा सकता है कि संजीवनी के स्वरूप का ऊँट किस करवट बैठे।
बेचारा विपक्ष जिस मुद्दे को संजीवनी समझ उससे चुनावी वैतरणी पार करने का प्रयास करता है सत्ता पक्ष वाले इतने शातिर हैं कि उस मुद्दे रुपी गुब्बारे में सुई चुभोकर उसकी ऐसी हवा निकालते हैं कि विपक्ष की हवा खराब हो जाती है। मित्रो आप अगर कोई ऐसा मुद्दा जानते हों जो संजीवनी की तरह विपक्ष की नैया पार करा सके तो हमें बताना। बेचारे विपक्ष की दयनीय दशा हमसे देखी नहीं जाती।
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आपका
अनन्त राम श्रीवास्तव