निबुड़ा निबुड़ा निबुड़ा-------
अनन्त राम श्रीवास्तव
मैं बाजार से नींबू के आसमान छूते भाव की जानकारी लेकर आया ही था कि पड़ोस वाली चाची आ धमकी। आते ही बोलीं लल्ला तुम्हायी भाभी पेट से हैं। उनको जी मचलाये रहो है सो नींबू होय तौ दियो. सो तुम्हायी भाभी को नींबू को शर्बत पिला दें तौ उनको जी मचलानो बंद हो जाये। तुम्हाये भइया दुयै दिन से बाजार में नींबू तलाश रये हैं पर नींबू के दर्शन दुर्लभ हुयै गये हैं। चाची अपनी बात पूरी भी नहीं कर पायीं थीं कि श्रीमती जी ने आकर पूँछा बाजार से नींबू लाये कि नहीं आज नींबू की शिकंजी पीने का मन कर रहा है।
मैंने कहा कहा बाजार में नींबू के दर्शन दुर्लभ हो गये हैं। कहाँ से ले आता। पड़ोसन चाची बोलीं बहू तुम्हाये जेठ दुयै दिन से बाजार में नींबू तलाश रये हैं पर नींबू हैं कि नजर नहीं आवत जैसे कतौ विदेश यात्रा पर निकल गव होय।
मैं थक हार कर टीवी देखने लगा। जैसे ही खबरिया चैनल लगाया कि नींबू के आसमान चढ़ते समाचार नजर आने लगे। बाजार में एक आदमी नींबू की नीलामी कर रहा था और लोग अपनी सामर्थ्य के अनुसार बोली लगा रहे थे। एक नींबू नीलामी में 60 रुपये का बिका। यह देखकर मेरी आँखें खुली की खुली रह गयीं।
सुबह तैयार हो कर आफिस निकलने ही वाला था कि पड़ोस का छोटू आ गया। आते ही बोला भैया आजकल दुकानदारी कम हो गयी है अगर आपको सस्ता मद्दा नींबू मिल जाये तो लेते आना दुकान में नींबू मिर्ची टाँग दूँगा तो दुकानदारी शरू हो जायेगी। मेरे बोलने से पूर्व श्रीमती जी ने कहा छोटू मिर्ची ही टाँग दे नींबू तो मिलने से रहे।
आफिस पहुँचा तो चपरासी रामू निंबुड़ा निंबुड़ा गुनगुना रहा था। मैंने कहा रामू क्या गुनगुना रहा है तो बोला साहब नींबू तो मिलने से रहे सो निंबुड़ा निंबुड़ा गुनगुना कर काम चला रहा था। इतने में तिवारी बाबू ने आते ही कहा क्या चल रहा है भाई। मैने कहा तेरे मोहल्ले में नींबू मिल जायें तो कल लेते आना। तिवारी बाबू ने कहा और सब कुछ मिल सकता है पर नींबू नहीं।
क्या नहीं मिल सकता है तिवारी बाबू? आफिस में घुसते ही सक्सेना बाबू ने कहा। नींबू नहीं मिल सकता है सक्सेना बाबू! जवाब देते हुये तिवारी बाबू ने कहा। हाँ यह तो सही है। डीजल पेट्रोल मंहगा होने के बावजूद बराबर मिल रहा है। पर नींबू तो ऐसे गायब है जैसे गधे के सिर से सींग। क्यों न हम अपने संगठन के माध्यम से सरकार से मांग करें कि वह हमें कंट्रोल रेट पर "जीवन रक्षक" नींबू उपलब्ध कराये। जिससे हम अपने जीवन की रक्षा कर सकें।
मित्रो नींबू के आसमान छूते भावों पर आज इतना ही शेष अगले अंक में। आज की " आप बीती व जग बीती" का अंक कैसा लगा। अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराना मत भूलें।
आपका
अनन्त राम श्रीवास्तव