गये थे नमाज बख्शवाने, रोजे गले पड़े
सस्ती लोकप्रियता के लिए उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर करने वाले कई मामले आपने सुने होंगे. अक्सर लोग सस्ती लोकप्रियता और अपने कुछ हितों के लिए भी ऐसा करते हैं. इससे न सिर्फ कोर्ट का समय नष्ट होता है बल्कि कई बार ऐसे लोगों को कोर्ट द्वारा फटकार भी लगती है। ये कुछ उसी तरह होता है जिसे हम उल्टे बांस बरेली लदना, मांगने गयी थी पूत मर गया भतार. आदि कहावतों में कह सकते हैं।
कुछ इसी तरह का एक मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में सामने आया है. यहां उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ 2007 में दर्ज हुए एक मामले को फिर से खुलवाने के उद्देश्य से इलाहाबाद उच्च न्यायालय पहुंचे व्यक्ति को उस समय चार सौ चालिस बोल्ट का झटका लगा जब कोर्ट ने उस पर एक लाख का जुर्माना लगाने के साथ उच्च न्यायालय ने उसकी याचिका को खारिज करते हुए जांच अधिकारियों को ये नसीहत भी दे डाली कि इस व्यक्ति के बैंक अकाउंट की जांच करें, ये लोअर कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक के चक्कर काट रहा है. एक के बाद एक रिट दायर करता है, लेकिन ये वकीलों को इतनी मोटी फीस देने के लिए इसके पास इतना सारा पैसा आखिर कहां से आ रहा है।
परवेज परवाज नामके शख्स ने निचली अदालत के उस आदेश को उच्च न्यालाय में चुनौती दी थी, जिसमें निचली अदालत ने योगी आदित्यनाथ के खिलाफ 2007 में दर्ज केस को बंद कर दिया था. परवेज का तर्क था कि निचली अदालत का फैसला गलत है. इस मामले को फिर से खोला जाना चाहिए. जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की बेंच के सामने ये अपील दायर की गई थी.
निचली अदालत से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचा परवेज
परवेज ने योगी के खिलाफ कानूनी लड़ाई निचली अदालत से शुरू की थी. उसने सबसे पहले गोरखपुर की अदालत में योगी के खिलाफ आईपीसी की धाराओं के तहत केस दायर करने के लिए याचिका लगाई थी. उसकी रिट सीजेएम कोर्ट से खारिज हुई तो वह इलाहाबाद उच्च न्यायालय पहुंचा. हाईकोर्ट के दखल के बाद तत्कालिन बीजेपी सांसद रहे (2008 में) योगी के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई।
पुलिस मामले की तफ्तीश कर ही रही थी कि परवेज ने फिर से उच्च न्यायालय में एक याचिका लगा दी. याचिका में कहा गया कि मामले की विवेचना ठीक से नहीं हो रही. ये रिट लंबित थी कि 2017 में यूपी सरकार ने योगी के खिलाफ दर्ज मामले में जांच के लिए मंजूरी देने से इनकार कर दिया. 2018 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी सरकार के पक्ष को मान लिया, लेकिन परवेज को ये ठीक नहीं लगा वह सर्वोच्च न्यायालय जा पहुंचा।
मित्रो एक कहावत है कि "गये थे नमाज बख्शवाने, रोजे गले पड़े" यह मामला भी कुछ इसी तरह का है। परवेज ने सामाजिक लोकप्रियता हासिल करने के लिए लोगों के बरगलाने पर अपना समय बरबाद कर तमाशा देखने का प्रयास किया जिसका परिणाम उसके सामने है। जाँच में अगर यह साबित हो गया कि उसने किसी प्रकार की फंडिंग लेकर यह सब किया है तो उसका जेल जाना तय है।
यह जग बीती हमें सोशल मीडिया के माध्यम से पवन श्रीवास्तव लखनऊ से मिली है। आप भी हमें इस प्रकार की घटनाओं से अवगत करा सकते हैं हम उनका "आप आप बीती व जग बीती " में स्वागत करेंगे। आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनायें।
आपका
A.R. Srivastava